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जिस्म पर लिपटा रहता है समशान का राख! रहस्यमयी नागा साधुओं के जीवन का सच, जानें क्या है गले में नर मुंड की हकीकत?

Naga Sadhu: संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से संत, महामंडलेश्वर और अघोरी साधु हिस्सा ले रहे हैं।

BY: Preeti Pandey • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज़), Naga Sadhu: संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से संत, महामंडलेश्वर और अघोरी साधु हिस्सा ले रहे हैं। अघोरी शब्द संस्कृत के अघोर शब्द से बना है, जिसका अर्थ है निर्भय। अघोरी शिव और शक्ति काली के उपासक होते हैं। अघोरी साधु मुख्य रूप से कापालिक परंपरा का पालन करते हैं और मानव खोपड़ी, चिता की राख और रुद्राक्ष धारण करते हैं।

एकांत में रहते हैं साधु

अघोरी साधु एकांत में रहते हैं और श्मशान घाट या दुर्गम स्थानों पर साधना करते हैं जहाँ आम लोगों का जाना मुश्किल होता है। अघोरी परंपरा की स्थापना 18वीं शताब्दी में बाबा किनाराम ने की थी, जिनकी साधना काशी में शुरू हुई और वहीं से यह परंपरा अन्य स्थानों पर फैल गई। अघोरी साधुओं के लिए मृत्यु से जुड़ी गतिविधियाँ, जैसे शव के साथ रहना और चिता से मांस खाना, आध्यात्मिक प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है। प्रमुख अघोरी स्थलों में काशी, तारापीठ, कालीमठ और चित्रकूट शामिल हैं, जहाँ अघोरी साधु अपनी साधना करते हैं।

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Naga Sadhu: जिस्म पर लिपटा रहता है समशान का राख!

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रहस्यों पर आधारीत

अघोरी का जीवन रहस्यपूर्ण और साधना पर केंद्रित होता है। वे तंत्र और मंत्र का प्रयोग आत्म-साक्षात्कार के लिए करते हैं, दूसरों के लिए नहीं। नागा साधुओं और अघोरियों में अंतर यह है कि नागा साधु धर्म और समाज की रक्षा करते हैं, जबकि अघोरी मोक्ष और आत्मज्ञान की साधना करते हैं। नागा साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और अखाड़ों से जुड़े होते हैं, जबकि अघोरी साधुओं के लिए ब्रह्मचर्य अनिवार्य नहीं है और वे शिव की गहन आराधना करते हैं।

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