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IndiaNews (इंडिया न्यूज), Chaitra Navratri: चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन माँ कालरात्रि को समर्पित है। 15 अप्रैल के दिन पूरे विधि-विधान से दुर्गा माता के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है साथ ही अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है।
आइए जानते हैं नवरात्रि के सातवें दिन का पूजा मुहूर्त, माता कालरात्रि की पूजा-विधि, स्वरूप, भोग, प्रिय रंग, पुष्प, महत्व, मंत्र और आरती। इन सभी का यदि नियम और धर्म से पालन किया जाए तो माता दुर्गा की अनुकंपा सदैव आप पर बनी रहती है।
ब्रह्म मुहूर्त- 04:26 AM से 05:11AM
प्रातः सन्ध्या- 04:48 AM से 05:55 AM
अभिजित मुहूर्त- 11:56 AM से 12:47 PM
विजय मुहूर्त- 02:30 PM से 03:21 PM
गोधूलि मुहूर्त- 06:46 PM से 07:08 PM
सायाह्न सन्ध्या- 06:47 PM से 07:54 PM
अमृत काल- 12:32 AM, अप्रैल 16 से 02:14 AM
निशिता मुहूर्त- 11:58 PM से 12:43 AM, अप्रैल 16
सर्वार्थ सिद्धि योग- 03:05 AM, अप्रैल 16 से 05:54 AM
मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है। ऐसे में पूजा के समय मां कालरात्रि को गुड़, गुड़ की खीर या गुड़ से बनी चीज का भोग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है और देवी मां प्रसन्न होती है। घर में सुख-शांति बनी रहती है।
‘ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’ इस मंत्र को बहुत शक्तिशाली मंत्र माना गया है। इस मंत्र का जाप करने से आप भय की भावना से मुक्त हो जाएंगे।
मां कालरात्रि का प्रिय रंग लाल माना जाता है। ऐसे में चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन पूजा के दौरान लाल वस्त्र पहनना शुभ रहेगा। वहीं, माता को लाल रंग के गुड़हल या गुलाब के पुष्प अर्पित करें।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
मां कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। मां कालरात्रि के चार हाथ औऱ तीन नेत्र हैं। मां के बाल बड़े और बिखरे हुए हैं। माता के गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती है। मां की श्वास से आग निकलती है। एक हाथ में माता ने खड्ग (तलवार), दूसरे में लौह शस्त्र, तीसरे हाथ वरमुद्रा और चौथे हाथ अभय मुद्रा में है।
1- सुबह उठकर स्नान करें और मंदिर साफ करें
2- माता का गंगाजल से अभिषेक करें।
3- मैया को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी, सिंदूर, पीले और लाल पुष्प अर्पित करें।
4- सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक कर फल, फूल और तिलक लगाएं।
5- प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
6- घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीपक जलाएं
7- दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें
8- फिर पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रख माता की आरती करें।
9- अंत में क्षमा प्रार्थना करें। अपनी गलतियों को स्वीकार कर उनसे माफी मांगे।
माता कालरात्रि अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं एवं ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली देवी हैं। इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी होती है।
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कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
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