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Chhath Puja 2023: हर साल क्यों मनाते हैं छठ पूजा? कहां से शुरु हुई यह परंपरा

BY: Shanu kumari • LAST UPDATED : November 13, 2023, 9:21 pm IST
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Chhath Puja 2023: हर साल क्यों मनाते हैं छठ पूजा? कहां से शुरु हुई यह परंपरा

India News (इंडिया न्यूज), Chhath Puja 2023: दिवाली खत्म हो चुका है। वहीं कुछ दिनों में छठ महापर्व आने वाला है। बिहार और यूपी में छठ पूजा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। यहां छठ पूजा काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। वहीं छठ पूजा का विशेष महत्व भी दिया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। जो कि हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है। इस पर्व के दौरान 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखने की प्रथा है।

  • 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखने की प्रथा
  • प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका नाम षष्ठी देवी

सूर्य भगवान और षष्ठी माता की पूजा

इस त्योहार में मुख्य तौर पर सूर्य भगवान और षष्ठी माता की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक यह त्योहार बच्चों के लिए किया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत महाभारत काल से बताई जाती है। जिस दौरान षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में षष्ठी माता को छठी मैया कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक षष्ठी देवी को ब्रह्म देव की मानसपुत्री कहा गया है। इनकी कृपा से नि:संतानों को संतान प्राप्त होती हैं। साथ ही इनके आर्शीवाद से संतानों की रक्षा होती है। उत्तरी भारत में संतान के जन्म होने बाद ही छठ पूजा किया जाता है। छठ पूजा का महत्व के बारे में कई पुराणों में भी बताया गया है।

महाभारत काल से मनाया जा रहा यह पर्व

शास्त्रों के मुताबिक जब इस सृष्टि को बनया गया था तो भगवान ने खुद को दो भागों में बांटा था। दाएं भाग को पुरुष और बाएं भाग से प्रकृति स्वरूप। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका नाम षष्ठी देवी दिया गया। षष्ठी देवी की पूजा संतानों की रक्षा और लंबी आयु के लिए किया जाता है। महाभारत काल को लेकर एक कथा काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है राजा प्रियवत के कोई संतान नहीं होने के कारण वो हमेशा दुखी रहते थें।

जिसके बाद उन्होंने महर्षि कश्यप से संतान सुख प्राप्त करने के उपाय पूछा। जिसपर महर्षि ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ कराने के लिए कहा था। जिसे कराने के बाद राजा का एक पुत्र हुआ। लेकिन वो मृत था। जिसके बाद उन्होंने काफी पूजा पाठ किया तभी षष्ठी देवी प्रकट हुई। जिसके बाद राजा ने अपने पुत्र को जीवित करने का वरदान मांगा। तब देवी प्रसन्न होकर उनके बेटे को दुबारा जिवित किया।

संतान सुख के लिए विशेष पूजा

इस घटना के बाद राजा ने अपनी प्रजा को इस बारे में बताया। राजा खुद भी इस पूजा को करने लगें। तब से षष्ठी देवी की पूजा शुरु हो गई। षष्ठी देवी को कात्यायनी मां के नाम से भी जाना जाता है। हम कात्यायनी मां की पूजानवरात्रि में षष्ठी तिथि को करते हैं। इसके साथ ही सूर्यदेव की पूजा सप्तमी तिथि को महत्व दिया गया है। इस पूजा को करने से संतान की प्राप्ती होती है। साथ ही संतान की रक्षा और सफलता होती है।

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