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Mahabharat Draupadi: 5 पतियों से विवाह होने के बावजूद भी क्यों Draupadi कहलाती थी 'सती'? जानें वजह!

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 27, 2024, 7:32 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Draupadi Called Sati: द्रौपदी महाभारत की एक प्रमुख पात्र थीं, जिन्हें पांच पांडवों की पत्नी होने के बावजूद ‘सती’ कहा जाता था। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण और घटनाएं हैं जो उनके इस आदर्श की व्याख्या करती हैं।

जन्म और विवाह:

द्रौपदी का जन्म राजा द्रुपद के यहाँ एक यज्ञ से हुआ था, इसलिए उन्हें ‘यज्ञसेनी’ भी कहा जाता है। उनके विवाह की कहानी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन ने ब्राह्मण के वेश में आकर मछली की आँख में तीर मारकर उन्हें जीत लिया। जब वे अपने भाइयों के पास पहुँचे, तो माता कुंती ने बिना देखे ही आदेश दिया कि वे जो भी लाए हैं उसे आपस में बाँट लें। कुंती के इस वचन का पालन करते हुए द्रौपदी ने पाँचों पांडवों से विवाह किया।

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सतीत्व का अर्थ:

प्राचीन भारतीय संस्कृति में ‘सती’ का अर्थ एक पवित्र और समर्पित पत्नी से होता है। द्रौपदी के जीवन में इस सतीत्व की अवधारणा कई रूपों में प्रकट होती है:

समर्पण और निष्ठा: द्रौपदी अपने पाँच पतियों के प्रति समान रूप से समर्पित और निष्ठावान थीं। उन्होंने अपने विवाह के धर्म का पूरी तरह से पालन किया और कभी किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षित नहीं हुईं।

धार्मिकता और नैतिकता: द्रौपदी ने हमेशा धर्म और नैतिकता का पालन किया। जब कौरवों ने उन्हें द्यूतसभा में अपमानित किया, तो उन्होंने अपनी मर्यादा और सम्मान को बनाए रखने के लिए भगवान कृष्ण की सहायता प्राप्त की।

संघर्ष और धैर्य: अपने जीवन में कई कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद, द्रौपदी ने हमेशा धैर्य और साहस का परिचय दिया। उन्होंने अपने पतियों के साथ वनवास में भी कष्ट सहन किया और हमेशा उनके समर्थन में खड़ी रहीं।

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विशेष घटनाएं:

द्यूतसभा का अपमान: कौरवों द्वारा द्रौपदी का अपमान एक महत्वपूर्ण घटना है जिसने उनके चरित्र को और भी दृढ़ बनाया। इस घटना के बाद भी उन्होंने धर्म का पालन किया और अपने पतियों का साथ नहीं छोड़ा।

विनम्रता और सेवा: द्रौपदी ने अपने पतियों और परिवार की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया।

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निष्कर्ष:

द्रौपदी का सतीत्व उनके जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों और उनके पतियों के प्रति समर्पण में निहित है। उनके चरित्र की गहराई और नैतिकता उन्हें भारतीय महाकाव्य में एक आदर्श नारी के रूप में स्थापित करती है। उनका जीवन और संघर्ष न केवल महाभारत की कहानी को महत्वपूर्ण बनाते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि सतीत्व का अर्थ केवल एक पति के प्रति समर्पण नहीं, बल्कि अपने धर्म और कर्तव्यों के प्रति अडिग रहने से है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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