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India News (इंडिया न्यूज), Draupadi’s Cursed Ghatotkach: महाभारत में द्रौपदी का व्यक्तित्व गहराई, स्वाभिमान, और साहस से भरपूर है। लेकिन उसके गुस्से ने कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कीं, जिनका प्रभाव भविष्य में देखने को मिला। घटोत्कच, जो भीम और हिडिंबा का पुत्र था, उनकी मृत्यु में भी द्रौपदी के गुस्से और श्राप की अहम भूमिका रही।
द्रौपदी और हिडिंबा के बीच रिश्ते सहज नहीं थे। भीम की पत्नी हिडिंबा अपने बेटे घटोत्कच को द्रौपदी के बारे में अनुकूल राय नहीं देती थी। जब घटोत्कच पहली बार हस्तिनापुर पहुंचा, तो उसने द्रौपदी को अनदेखा कर दिया और यहां तक कि राजसभा में उनका अपमान भी कर दिया। द्रौपदी, जो स्वयं को पांडवों की पत्नी और राजा द्रुपद की पुत्री मानती थीं, इस अपमान से आहत हो गईं। क्रोध में उन्होंने घटोत्कच को श्राप दिया कि उसकी मृत्यु जल्दी होगी और वह बिना लड़ाई के मरेगा।
महाभारत युद्ध के दौरान घटोत्कच ने अपनी मायावी शक्तियों और विशालकाय रूप से कौरवों की सेना को हिला कर रख दिया। उसकी ताकत इतनी थी कि उसके एक कदम से हजारों सैनिक मारे जाते थे। जब कौरवों की सेना कमजोर पड़ने लगी, तो दुर्योधन ने कर्ण को उसे मारने के लिए भेजा। कर्ण ने अपने दिव्यास्त्र “शक्ति” का प्रयोग किया, जो केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकता था। इस अस्त्र ने घटोत्कच का अंत कर दिया।
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घटोत्कच की मृत्यु ने पांडवों को गहरा दुःख दिया, लेकिन श्रीकृष्ण इसके विपरीत प्रसन्न हुए। उनके अनुसार, यदि कर्ण ने यह अस्त्र घटोत्कच पर नहीं चलाया होता, तो इसका उपयोग अर्जुन के खिलाफ होता। इस प्रकार, घटोत्कच की मृत्यु ने युद्ध के परिणाम को बदलने में अहम भूमिका निभाई।
घटोत्कच की मृत्यु के बाद द्रौपदी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने महसूस किया कि उनका क्रोध अनावश्यक था और इसके कारण एक वीर योद्धा की असमय मृत्यु हो गई। द्रौपदी ने स्वयं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और गहरा पछतावा किया।
घटोत्कच महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक था। उसकी मायावी शक्तियां और विशालकाय रूप उसे युद्ध में अजेय बनाते थे। जब कौरवों की सेना पांडवों पर भारी पड़ रही थी, तो भीम ने घटोत्कच को युद्ध में बुलाया। उसने अपनी शक्तियों से कौरव सेना को बुरी तरह से कुचल दिया। उसकी वीरता का अंत कर्ण के दिव्यास्त्र से हुआ, लेकिन उसने अपने बलिदान से पांडवों को विजय का मार्ग प्रदान किया।
घटोत्कच को श्राप देने के अलावा, द्रौपदी ने चंबल नदी और कुत्तों को भी श्राप दिया था। द्रौपदी के स्वाभिमान और गुस्से ने कई बार उसे कठोर निर्णय लेने पर मजबूर किया।
महाभारत की यह घटना न केवल द्रौपदी के गुस्से और स्वाभिमान को दिखाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि उसके निर्णयों का प्रभाव कितना व्यापक था। घटोत्कच, जो वीरता और शक्ति का प्रतीक था, द्रौपदी के श्राप और कर्ण के अस्त्र का शिकार बन गया। फिर भी, उसका बलिदान पांडवों की विजय का एक अहम कारण बना।
घटोत्कच की कहानी यह सिखाती है कि क्रोध और अपमानजनक व्यवहार के परिणाम घातक हो सकते हैं। यह घटना महाभारत के उन पहलुओं में से एक है, जो मानवीय भावनाओं और उनके प्रभावों की गहराई को समझने में मदद करती है।
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