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महाकुंभ में किन्नर करते हैं ये काम…चलती हैं तलवारें, नागा साधुओं के सामने कैसे होती है 'पेशवाई'?

BY: Preeti Pandey • LAST UPDATED : December 18, 2024, 4:40 pm IST
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महाकुंभ में किन्नर करते हैं ये काम…चलती हैं तलवारें, नागा साधुओं के सामने कैसे होती है 'पेशवाई'?

Mahakumbh 2025

India News (इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भव्य महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है, जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं। महाकुंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि तक 45 दिनों तक चलेगा, जिसमें दुनिया भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस दौरान त्रिवेणी संगम पर आस्था का मनोरम नजारा देखने को मिलता है। महाकुंभ में साधु-संत भी पहुंचते हैं, जिनके बिना यह आयोजन अधूरा है। साधु-संतों के जुलूस के बाद ही महाकुंभ का शाही स्नान शुरू होता है। महाकुंभ में अखाड़ों का जुलूस होता है, जिसमें हाथी-घोड़ों पर सवार होकर अखाड़ों के शाही जुलूस निकाले जाते हैं। आइए जानते हैं महाकुंभ में शाही जुलूस का नेतृत्व कौन करता है और शाही सवारी में किसे बैठने की अनुमति होती है।

अखाड़ा क्या है

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि महाकुंभ में अखाड़ा क्या है। क्योंकि यह एक ऐसा शब्द है जो महाकुंभ के दौरान खूब सुनने को मिलता है। अखाड़ा सुनते ही आमतौर पर हमारे मन में कुश्ती का ख्याल आता है। लेकिन महाकुंभ में अखाड़े का मतलब साधु-संतों का समूह होता है। दरअसल, आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में सनातन जीवन शैली की रक्षा के लिए तपस्वियों के संगठन को एकजुट करने का प्रयास किया और उन्हें अखाड़ा नाम दिया। अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना था। अखाड़े के साधु-संन्यासी शास्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों (शस्त्र) के भी अच्छे जानकार होते हैं।

महाकुंभ में पेशवाई क्या है

प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के इस विशाल धार्मिक आयोजन में लाखों साधु-संन्यासी और अखाड़े हिस्सा लेते हैं। लेकिन इस विशाल धार्मिक आयोजन में साधु-संतों का जुलूस आकर्षण का केंद्र होता है। महाकुंभ में पहुंचने के लिए साधु-संत अपने अखाड़े से भव्य जुलूस निकालते हैं, जिसे पेशवाई कहते हैं। जुलूस में बैंड होता है, हाथी-घोड़े सजे होते हैं और रथों में शाही जुलूस निकाला जाता है। रथों में पूज्य गुरु या संत या महंत बैठते हैं। भक्त या अनुयायी नाचते-गाते चलते हैं। महाकुंभ के जुलूस में अखाड़ों के प्रमुख महंत, नागा साधु और भक्त या अनुयायी होते हैं। महाकुंभ का जुलूस अखाड़ों की भव्यता, शक्ति और अनुशासन का प्रदर्शन माना जाता है। जुलूस देखने के लिए श्रद्धालु संगम नगरी पहुंचते हैं।

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शाही स्नान से पहले होती है पेशवाई

महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। महाकुंभ के दौरान मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि जैसी विशेष तिथियों पर शाही स्नान होता है। आपको बता दें कि प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर 13 जनवरी 2025 से शुरू हो रहे महाकुंभ में इस बार शाही स्नान की परंपरा का ध्वजवाहक जूना अखाड़ा है। महाकुंभ में भव्य शोभा यात्रा के साथ पेशवाई करने के बाद विभिन्न अखाड़ों के संत और नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान करते हैं। इनके स्नान के बाद ही गृहस्थ या आम श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाते हैं। इसलिए पेशवाई का संबंध शाही स्नान से है।

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