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Bajrang Baan: मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करने से हनुमान जी होते हैं प्रसन्न

India news(इंडिया न्यूज़), Bajrang Baan: पुराणों के अनुसार हनुमान जी कलयुग के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर अभी भी धरती पर रहते है। हनुमान जी अपने भक्तों को रोग, शोक से मुक्ति दिलाने के लिए माने जाते हैं। इनकी पूजा करने  से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है। भय से मुक्ति मिलती है और जीवन […]

BY: Ritesh kumar Bajpeyee • UPDATED :
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India news(इंडिया न्यूज़), Bajrang Baan: पुराणों के अनुसार हनुमान जी कलयुग के एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर अभी भी धरती पर रहते है। हनुमान जी अपने भक्तों को रोग, शोक से मुक्ति दिलाने के लिए माने जाते हैं। इनकी पूजा करने  से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है। भय से मुक्ति मिलती है और जीवन में मंगल होता है। भक्त हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं. भय से मुक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ के साथ बजरंग बाण का पाठ करने की भी मान्यता है। शास्त्रों के अनुसार बजरंग बाण का नियमित पाठ करने से कुंडली में मंगल ग्रह दोष समाप्त होते हैं। विवाह में आने वाले अड़चन दूर होते हैं। गंभीर बीमारियों से राहत मिलती है। व्यक्ति को अपने  कार्य में सफलताएं प्राप्त होती हैं। समाज में मान-सम्मान की वृद्धि होती है और वास्तुदोष खत्म हो जाते हैं।

मंगल ग्रह के मांगलिक प्रभाव होते है कम

मंगलवार के दिन हनुमान जी के साथ मंगल ग्रह की पूजा भी की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों के अनुसार कुंडली में मांगलिक होने पर वयक्ती के विवाह में देरी होती है। मंगल ग्रह के मांगलिक प्रभाव से बचने के लिए मंगलवार के दिन इन मंत्रों के जाप से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है।

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मंगल ग्रह का प्रार्थना मंत्र-

‘ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम।

कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम।।’

आइए जानते हैं सम्पूर्ण बजरंग बाण का पाठ

दोहा

“निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।”

“तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥”

“चौपाई”

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।

बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।

ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।

ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।

ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

“दोहा”

” प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। ”

” तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। ”

 

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