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शिव की सवारी नंदी बाबा को तो जानते होंगे ही आप…लेकिन कैसे एक साधारण सा जानवर बन गया भोलेभंडारी का वाहन?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : September 16, 2024, 3:30 pm IST
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शिव की सवारी नंदी बाबा को तो जानते होंगे ही आप…लेकिन कैसे एक साधारण सा जानवर बन गया भोलेभंडारी का वाहन?

Shiv Vahan Nandi Maharaj: नंदी की तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया।

India News (इंडिया न्यूज), Shiv Vahan Nandi Maharaj: सनातन धर्म में देवताओं के वाहन का महत्व विशेष होता है। भगवान विष्णु गरूढ़ पर सवारी करते हैं, श्री गणेश मूषक पर, माता लक्ष्मी उल्लू पर, और भगवान शिव नंदी पर। इन देवताओं के वाहन सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं हैं; इनके पीछे गहरी पौराणिक कथाएँ छिपी हुई हैं। भगवान शिव की सवारी नंदी बनने की कथा भी ऐसी ही एक महत्वपूर्ण पौराणिक कहानी है।

ऋषि शिलाद की तपस्या और नंदी का जन्म

कहानी की शुरुआत ऋषि शिलाद से होती है, जो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे थे। वे बेहद चिंतित थे कि यदि उनकी मृत्यु हो गई तो उनका वंश समाप्त हो जाएगा। इस चिंता से उबरने के लिए, उन्होंने कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया ताकि भगवान शिव उनकी पूजा से प्रसन्न हों और उन्हें एक संतान का आशीर्वाद दें।

भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने ऋषि से कहा, “तुम्हारी तपस्या और भक्ति से मैं बहुत खुश हूँ। तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के लिए, तुम मुझसे वरदान मांग सकते हो।”

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ऋषि शिलाद ने भगवान शिव से एक ऐसा पुत्र देने की प्रार्थना की, जिसे मृत्यु का कोई भय न हो और जो हमेशा भगवान शिव की कृपा से परिपूर्ण रहे। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हें आश्वासन दिया कि वे एक ऐसा पुत्र देंगे।

नंदी का अद्भुत जन्म

अगले ही दिन, ऋषि शिलाद खेत से गुजर रहे थे जब उनकी नजर एक सुंदर नवजात बच्चे पर पड़ी। वह बच्चा बेहद प्यारा और आकर्षक था। अचानक, भगवान शिव की आवाज उनके कानों में आई, “यही तुम्हारा पुत्र है।”

ऋषि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने बच्चे को अपने घर लाकर उसका नाम नंदी रखा।

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संन्यासियों का आगमन और नंदी की तपस्या

कुछ समय बाद, ऋषि शिलाद के घर पर दो संन्यासी आए। ऋषि ने उनका स्वागत आदर और सम्मान से किया और उन्हें सभी आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की। संन्यासी उनकी भक्ति और सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और ऋषि को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया। हालांकि, नंदी के लिए उन्होंने कोई विशेष आशीर्वाद नहीं दिया।

ऋषि शिलाद ने संन्यासियों से इसका कारण पूछा। संन्यासियों ने उत्तर दिया, “नंदी की उम्र कम है, इसलिए हमने उसे आशीर्वाद नहीं दिया।”

नंदी ने यह सब सुन लिया और ऋषि शिलाद से कहा, “मुझे कोई चिंता नहीं है। मेरा जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ है, और वे ही मेरी रक्षा करेंगे।” इसके बाद, नंदी ने भगवान शिव की स्तुति और कठोर तपस्या शुरू की।

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नंदी का भगवान शिव का प्रिय वाहन बनना

नंदी की तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया। नंदी की भक्ति और तपस्या ने उसे भगवान शिव का सबसे नजदीकी और प्रिय वाहन बना दिया। इसके बाद से, नंदी की पूजा भगवान शिव के साथ की जाने लगी, और वह भगवान शिव की उपस्थिति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया।

यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति, तपस्या, और दृढ़ संकल्प से किसी भी असंभव को संभव बनाया जा सकता है। नंदी की भगवान शिव के वाहन के रूप में नियुक्ति एक प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें दिखाती है कि सच्ची भक्ति और तपस्या के माध्यम से महान आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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