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एक सिक्के पर मनोकामना पूरी…कैसी है ये हिमाचल की किन्नर कैलाश यात्रा, जिसका शिवलिंग भी बदलता है एक दिन कई रंग?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 12, 2024, 3:28 pm IST
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एक सिक्के पर मनोकामना पूरी…कैसी है ये हिमाचल की किन्नर कैलाश यात्रा, जिसका शिवलिंग भी बदलता है एक दिन कई रंग?

Kailash Mansarovar Yatra: किन्नर कैलाश की यात्रा 1993 में आम लोगों के लिए खोली गई थी। इससे पहले यहां आने-जाने पर प्रतिबंध था। अब यह स्थल भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा स्थल बन चुका है, जहां लोग भगवान शिव की उपासना करने आते हैं।

India News (इंडिया न्यूज), Kailash Mansarovar Yatra: कैलाश मानसरोवर यात्रा तो आपने कई बार सुनी होगी, लेकिन सावन के महीने में होने वाली किन्नर कैलाश यात्रा के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के बाद किन्नर कैलाश को दूसरा सबसे बड़ा कैलाश पर्वत माना जाता है। यह स्थल हिमाचल प्रदेश में स्थित है और इसे सबसे खतरनाक यात्राओं में से एक माना जाता है। किन्नर कैलाश सदियों से हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है, जहां हर साल लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं।

किन्नर कैलाश का भौगोलिक विवरण

कैलाश पर्वत समुद्र तल से 24,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जो इसे एक अद्भुत और चुनौतीपूर्ण यात्रा बनाता है। यात्रा की शुरुआत भक्तों को जिला मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर दूर पोवारी से करनी होती है, जहां से सतलज नदी पार करने के बाद तंगलिंग गांव की ओर जाना पड़ता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और तीव्र चढ़ाई, भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रस्तुत करती है।

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पार्वती कुंड और मान्यताएं

गणेश पार्क से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित पार्वती कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डालने पर मन की मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में स्नान करने के बाद लगभग 24 घंटे की चढ़ाई करके किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करते हैं। यह शिवलिंग 40 फीट ऊंचा है और हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों के लिए पूजनीय है।

यात्रा का इतिहास

किन्नर कैलाश की यात्रा 1993 में आम लोगों के लिए खोली गई थी। इससे पहले यहां आने-जाने पर प्रतिबंध था। अब यह स्थल भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा स्थल बन चुका है, जहां लोग भगवान शिव की उपासना करने आते हैं।

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पौराणिक महत्व

किन्नर कैलाश का पौराणिक महत्व भी अत्यधिक है। कुछ विद्वानों का मानना है कि महाभारत काल में इस पर्वत का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शिव और अर्जुन का युद्ध हुआ था। यह माना जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास का अंतिम समय यहीं बिताया था। इसे वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।

अद्वितीय शिवलिंग

इस शिवलिंग की एक खासियत यह है कि यह दिन में कई बार अपना रंग बदलता है। सूर्योदय से पहले यह सफेद, सूर्योदय पर पीला, मध्याह्न में लाल, और फिर संध्या के समय काला हो जाता है। इसके बदलते रंगों का रहस्य आज तक किसी को समझ नहीं आया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक स्फटिकीय रचना है, जो सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पड़ने पर रंग बदलती है।

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निष्कर्ष

किन्नर कैलाश यात्रा एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव है, जो न केवल भौगोलिक चुनौतियों से भरी है, बल्कि इसमें गहरे धार्मिक और पौराणिक तत्व भी समाहित हैं। यदि आप आध्यात्मिकता और साहसिकता का अनुभव करना चाहते हैं, तो किन्नर कैलाश की यात्रा आपके लिए एक अद्भुत अवसर हो सकती है। यह स्थान श्रद्धा और विश्वास के साथ यात्रा करने वालों के लिए एक अनमोल अनुभव प्रदान करता है।

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