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चीरहरण के वक्त द्रौपदी के मुंह से निकले दुर्योधन और दुशासन को लेकर वो शब्द…मरते दम तक खुद को नहीं बचा पाए थे ये पापी

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 27, 2024, 11:15 am IST
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चीरहरण के वक्त द्रौपदी के मुंह से निकले दुर्योधन और दुशासन को लेकर वो शब्द…मरते दम तक खुद को नहीं बचा पाए थे ये पापी

Facts About Mahabharat: चीरहरण के वक्त द्रौपदी के मुंह से निकले दुर्योधन और दुशासन को लेकर वो शब्द

India News (इंडिया न्यूज), Facts About Mahabharat: महाभारत, भारतीय इतिहास और धर्म का एक महाकाव्य, पांडवों और कौरवों के बीच हुए भीषण युद्ध की कथा है। यह युद्ध न केवल राजनीतिक महत्व का था, बल्कि इसमें जीवन और धर्म के गहन पाठ भी समाहित थे। महाभारत युद्ध में करोड़ों योद्धा और सैनिक मारे गए, और इसका मूल कारण कौरवों के सबसे बड़े भाई दुर्योधन को माना जाता है।

दुर्योधन और गांधारी का वरदान

दुर्योधन, कौरवों का प्रमुख योद्धा, अपनी मां गांधारी से गहरे संबंध रखता था। गांधारी भगवान शिव की परम भक्त थीं और उन्होंने शिव से एक अद्वितीय वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान के अनुसार, उनकी दृष्टि जहां पड़ेगी, वहां का शरीर वज्र जैसा अजेय हो जाएगा। इस वरदान का उपयोग गांधारी ने अपने पुत्र दुर्योधन के लिए करने का निश्चय किया।

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गांधारी की सलाह और श्रीकृष्ण की चतुराई

महाभारत युद्ध के अंतिम दिनों में गांधारी ने दुर्योधन को नग्न होकर उनके सामने आने की सलाह दी। उनका उद्देश्य था कि उनकी दृष्टि से दुर्योधन का पूरा शरीर वज्र के समान मजबूत हो जाए और वह युद्ध में अजेय बन सके।

हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण, जो पांडवों के मार्गदर्शक और परम मित्र थे, ने इस योजना को भांप लिया। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को सुझाव दिया कि वह अपनी मां के सामने नग्न न जाए क्योंकि यह मर्यादा के विरुद्ध है। उन्होंने उसे अपने गुप्तांग को केले के पत्तों से ढकने के लिए कहा। दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की बात मान ली और ऐसा ही किया।

गांधारी का वरदान और दुर्योधन की कमजोरी

जब गांधारी ने अपनी आंखों पर बंधी पट्टी खोली और दुर्योधन पर दृष्टि डाली, तो उसका पूरा शरीर वज्र के समान हो गया। हालांकि, जहां-जहां केले के पत्ते थे, वहां उनका वरदान प्रभावी नहीं हो पाया। नतीजतन, दुर्योधन की जांघ और गुप्तांग कमजोर रह गए।

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दुर्योधन की मृत्यु

महाभारत युद्ध के 17वें दिन, दुर्योधन और भीम के बीच भीषण गदा युद्ध हुआ। भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए दुर्योधन की जांघ पर वार किया। यह वही स्थान था, जो गांधारी के वरदान से अछूता रह गया था। इस घातक प्रहार के कारण दुर्योधन की मृत्यु हो गई।

महाभारत की यह घटना हमें कई महत्वपूर्ण सबक देती है। इसमें मर्यादा, चतुराई, और कर्म का गहन महत्व दर्शाया गया है। दुर्योधन का अहंकार और अधर्म उसके पतन का कारण बना, जबकि श्रीकृष्ण की कूटनीति और भीम की प्रतिज्ञा ने धर्म की विजय सुनिश्चित की।

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महाभारत का युद्ध केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह धर्म, नीति और कर्तव्य का महान पाठ है। दुर्योधन और गांधारी की यह कथा इस महाकाव्य की गहराई और जटिलता को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

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