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India News (इंडिया न्यूज़), Baba Neem Karoli: नीम करोली बाबा आश्रम, जिसे कैंची धाम के नाम से जाना जाता है, 15 जून को हर साल अपना स्थापना दिवस मनाता है। इस आश्रम की नींव खुद बाबा नीम करोली ने रखी थी। बाबा नीम करोली से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं, जो उनकी आध्यात्मिक शक्ति और अद्भुत जीवन के बारे में बताते हैं। डॉ. जया प्रसाद की किताब ‘श्री सिद्धि मां’ में बाबा के जीवन और उनके आश्रम के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
नीम करोली एक छोटा-सा गांव है, जो उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित है। यह गांव बाबा नीम करोली की वजह से दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। बाबा ने यहां लंबे समय तक प्रवास किया और एक गुफा में तपस्या की। डॉ. जया प्रसाद लिखती हैं कि बाबा की महासमाधि के बाद उनकी शिष्या श्री सिद्धि मां ने उस गुफा को खोजने का निर्णय लिया, जहां बाबा ने तपस्या की थी।
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सिद्धि मां ने फर्रुखाबाद के गांव में जाकर स्थानीय लोगों से महाराजजी की गुफा के बारे में जानने का प्रयास किया। लेकिन 30 साल से ज्यादा का समय बीत जाने के कारण किसी को सही जानकारी नहीं थी। कुछ लोग एक खेत की ओर इशारा कर रहे थे, लेकिन उस खेत की कई बार जुताई हो चुकी थी। सिद्धि मां ने अगले दिन उसी खेत में खुदाई शुरू करवाई। अचानक एक वृद्ध व्यक्ति ने मां से कहा कि जहां मैया के चरण हैं, वहीं खोदना चाहिए। उनकी बात मानकर गांव वालों ने खुदाई शुरू की और गुफा का पता चला।
गुफा के अंदर हवन सामग्री की दिव्य सुगंध आ रही थी। गुफा के दो हिस्सों में विभाजित होने के कारण यह सुरंगनुमा गुफा थी। भीतरी हिस्से में कोयले के टुकड़े और हवन की विभूति पाई गई, जो बाबा के साधना और आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रमाण थी। गुफा के अंदर से लोहे के दो कंडे, दो मिट्टी के गोले (जो गौरी-गणेश के रूप में पूजे जाते हैं) और एक लोहे का चिमटा मिला, जिस पर बाबा लक्ष्मण दास खुदा हुआ था। यह सब चीजें बाबा नीम करोली के जीवन और उनके आध्यात्मिक कार्यों का प्रमाण हैं।
डॉ. जया प्रसाद लिखती हैं कि बाबा ने एक वृद्ध व्यक्ति के हाथों में अपना चिमटा सौंपा था, जो उस गुफा से प्राप्त हुआ। यह चिमटा बाबा की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
इस प्रकार नीम करोली बाबा आश्रम का स्थापना दिवस उनके भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें वे बाबा की स्मृतियों और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को याद करते हैं।
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