Hindi News / Dharam / In This Village Of Up Bhagata Nagla People Are Not Performing Shraddha For 100 Years

आखिर क्यों 100 साल से इस गांव का एक भी व्यक्ति नहीं करता श्राद्ध पूजा? पितृ पक्ष में ब्राह्मण का प्रवेश तक है वर्जित!

Bhagata Nagla: उत्तर प्रदेश के संभल जिले के गुन्नौर तहसील के गांव भगता नगला में 100 साल से इस गांव में पितृ पक्ष के दौरान न तो श्राद्ध होता है, न ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Pitru Paksh 2024: भारत में पितृ पक्ष का समय श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य की पवित्र परंपरा का निर्वहन करने का समय माना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और उन्हें दान-दक्षिणा देकर अपने पूर्वजों को सम्मान अर्पित करते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के संभल जिले के गुन्नौर तहसील के गांव भगता नगला में 100 साल से कुछ अलग ही परंपरा देखने को मिलती है।

इस गांव में पितृ पक्ष के दौरान न तो श्राद्ध होता है, न ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, और न ही ब्राह्मण गांव में प्रवेश करते हैं। यह अनोखी परंपरा लगभग 100 साल पुरानी है और इसके पीछे एक ब्राह्मण महिला की करुण कहानी छिपी है।

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Bhagata Nagla: उत्तर प्रदेश के संभल जिले के गुन्नौर तहसील के गांव भगता नगला में 100 साल से इस गांव में पितृ पक्ष के दौरान न तो श्राद्ध होता है, न ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है

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भगता नगला की परंपरा और श्राद्ध का बहिष्कार

भगता नगला गांव के लोग पितृ पक्ष के 16 दिनों में किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान नहीं करते। यहां तक कि इन दिनों में गांव में कोई भी भिक्षु नहीं आता, और यदि कोई गलती से आ भी जाता है, तो उसे भिक्षा नहीं दी जाती। गांव में श्राद्ध और पूजा-पाठ का पूर्ण बहिष्कार किया जाता है। इस परंपरा के पीछे की कहानी का संबंध एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा हुआ है, जो गांव के बुजुर्गों के अनुसार एक श्राप के रूप में मानी जाती है।

कहानी: ब्राह्मण महिला की पीड़ा और श्राप

भगता नगला के एक बुजुर्ग निवासी रेवती सिंह बताते हैं कि यह परंपरा एक घटना के बाद शुरू हुई, जब प्राचीन काल में गांव की एक ब्राह्मण महिला श्राद्ध सम्पन्न कराने के लिए गांव आई थी। श्राद्ध के बाद गांव में भारी बारिश शुरू हो गई, जिससे महिला को कई दिनों तक ग्रामीण के घर पर ही रुकना पड़ा। बारिश समाप्त होने पर जब वह अपने घर लौटी, तो उसके पति ने उसके चरित्र पर शक करते हुए उसे घर से निकाल दिया।

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अपने पति द्वारा अपमानित और निराश ब्राह्मण महिला वापस भगता नगला गांव लौट आई और वहां के ग्रामीणों को अपने साथ हुए अन्याय की पूरी कहानी सुनाई। महिला ने कहा कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कराने के कारण उसे अपमानित होना पड़ा, और उसने यह भी कहा कि यदि गांव वाले आगे श्राद्ध करेंगे, तो उनके साथ भी कुछ बुरा घटित होगा।

श्राप का प्रभाव: 100 साल पुरानी परंपरा

ब्राह्मण महिला की पीड़ा और उसके श्राप को गांव के लोगों ने गंभीरता से लिया और तब से गांव में श्राद्ध का आयोजन बंद हो गया। गांव के लोग आज भी इस परंपरा का पालन करते हैं और पितृ पक्ष में श्राद्ध नहीं करते। हालांकि, बाकी दिनों में गांव में सामान्य धार्मिक गतिविधियां होती हैं और विवाह जैसे संस्कार भी ब्राह्मणों द्वारा ही सम्पन्न कराए जाते हैं।

ग्रामीण इस परंपरा को बुजुर्गों की सीख और श्राप का परिणाम मानते हैं, और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं। उनके अनुसार, इस परंपरा का पालन करने से गांव पर कोई आपदा या विपत्ति नहीं आई है, इसलिए वे इसे आगे भी बनाए रखने का संकल्प लेते हैं।

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निष्कर्ष

भगता नगला की यह अनोखी परंपरा भारतीय संस्कृति में श्राद्ध कर्म और धार्मिक परंपराओं के महत्व को दर्शाने के साथ-साथ मानव भावनाओं और आस्थाओं के गहरे प्रभाव को भी उजागर करती है। भले ही यह परंपरा एक दुखद घटना से जन्मी हो, लेकिन यह ग्रामीणों के विश्वास और उनके समाज के बंधन को दिखाती है। भारतीय समाज में ऐसे किस्से और परंपराएं समय-समय पर सामने आती रहती हैं, जो समाज की धार्मिक धरोहर और मान्यताओं को समझने में सहायक होती हैं।

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इस परंपरा का आज भी अनुसरण करना यह दर्शाता है कि भारतीय समाज में इतिहास और संस्कृति का कितना गहरा प्रभाव होता है, और कैसे एक घटना पीढ़ियों तक एक पूरे समुदाय के जीवन को प्रभावित कर सकती है।

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