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Khatu Shyam
India News (इंडिया न्यूज़), Khatu Shyam, दिल्ली: हम बात कर रहे हैं खाटू श्याम की राजस्थान के सीकर जिले के गांव खाटू के नरेश खाटूश्याम को पूरी दुनिया में शीश के दानी नाम से जाना जाता है। साथ ही इन्हें हारे का सहारा,लखदातार, नीले घोड़े का सवार मोर्विनंदन भी कहा जाता है। इतना ही नहीं सिलीगुड़ी में हर साल श्याम प्रभु का उत्सव बङी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हाँलाकि ज्यादातर श्याम भक्त इसके बार में पूरी तरह से नहीं जानते? कि आखिर कौन है श्री खाटू श्याम। लेकिन ऐसे में यह जानना जरुरी है कि खाटू श्याम कौन है। तो आइए आज आपको इससे जुङी पूरी जानकारी देते हैं।
कई पंडित और विदानों का कहना है कि कौरव वंश के राजा दुर्योधन ने निर्दोष पांडवों को सताने और उन्हें मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण कराया था लेकिन वहां से वो सभी सौभाग्यवश बच निकले और फिर उसके बाद वो सभी वनवास में रहने लगे। एक समय वन में हिडम्बासुर नाम का राक्षस अपनी बहन हिडिम्बा के साथ पहुंचा। जहाँ उसे पांडवों की गंध आई तो वह बहन से बोला कि इन मनुष्यों को मारकर मेरे पास ले आओ भाई के आदेश से वह वहां पहुंची जहां सभी भाई द्रौपदी सहित सो रहे थे। साथ ही उनकी रक्षा करने के लिए भीम वहाँ पर खङे हुए थे।
लेकिन जब हिडिम्बा ने भीम को देखा तो वो भीम पर मोहित हो गई। उसने भाई की परवाह किए बिना ही भीम को अपना पति मान लिया। जब वहां हिडिम्बासुर पहुंचा तो बहन को सुंदर स्त्री के रुप में देख क्रोधित हो गया। भीम के साथ हिडिम्बा का गंधर्व विवाह हुआ। हिडिम्बा गर्भवती हुई और बेटे को जन्म दिया। बाल रहित होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। उसके बाद भीम को छोड़कर हिडिम्बा वन में चली गई। इसके बाद भीम और हिडिंबा के बेटे घटोत्कच का विवाह श्रीकृष्ण के कहने पर मणिपुर में मुरदेत्य की लड़की कामकंटका से हुआ। साथ ही उसका नाम बर्बरीक रखा। बल की प्राप्ति के लिए उसने देवताओं और देवियों की अराधना कर तीनों लोकों में दुर्लभ बल प्राप्त किया। उसके बाद देवियों ने उससे कहा कि विजय नामक एक ब्राह्म्ण आएंगे जिससे तुम्हारा कल्याण होगा। बर्बरीक को ब्राह्म्ण के बताए मार्ग पर शक्ति की प्राप्ति हुई। बर्बरीक ने साधना में विध्न डालने वाले सभी राक्षसों को यमलोक भेज दिया। असुरों को मारने पर नागों के राजा बासुकी आए और बर्बरीक से वरदान मांगने को कहा। बर्बरीक को युद्ध में विजय होने का वर प्राप्त हो गया और फिर उसके बाद उसका नाम सिद्धसेन हो गया।
कुछ दिनों बाद कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की तैयारी शुरू हुई। इस पर बर्बरीक नीले घोड़े पर सवार होकर चले। जहाँ रास्ते में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्म्ण वेष में पहुंचे। युद्ध के संबंध में जब पूछा कि तुम किसकी ओर से लड़ना चाहते हो तो उसने कहा जो कमजोर होगा उसके पक्ष में। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम तीन ही बाणों से सारी सेना को कैसे नष्ट कर सकते हो। तब बर्बरीक ने कहा सामने वाले पीपल वृक्ष के सभी पत्ते एक ही बाण से निशान बनाएगा और दूसरा उसे बेध देगा। यह बालकर वह परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो गया जिससे कृष्ण को लगा कि यह तो एक ही बाण से सभी को यमलोक भेज सकता है। तब ब्राहम्ण बने कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि मैं जो मांगू मिल जाएगा। जिस पर बर्बरीक ने हां कह दिया और उसके बाद श्रीकृष्ण ने उसका शीश दान में देने को कहा।
श्रीकृष्ण की यह बात सुनते ही बर्बरीक समझ गया कि यह कोई ब्राह्म्ण नहीं है। उसके बाद भगवान ने अपना विराट स्वरुप दिखाया और कहा कि अगर तुम युद्ध में जाते तो दोनो कुल पूरी तरह से नष्ट हो जाते इसलिए मुझे यह करना पड़ा बर्बरीक अपना शीश देने को राजी हुआ और कहा कि मैं युद्ध देखना चाहता हूं। उसके बाद श्रीकृष्ण ने अमृत जड़ी से उसे पर्वत शिखर पीपल पर स्थापित किया। 18 दिनों के युद्ध के बाद पांडवों की जीत हुई। पांडवों को अपनी जीत पर घमंड था तब श्रीकृष्ण ने सबको बर्बरीक के शीश के दर्शन कराएं। बर्बरीक ने कहा कि यह जीत श्रीकृष्ण के नीति की वजह से हुई है। उसके बाद श्री कृष्ण ने वरदान दिया कि कलयुग में मरे श्याम नाम से तुम्हारा सुमरन करने से सभी मनोरथ पूरे हो जाएंगे।
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