India News (इंडिया न्यूज), Jitiya Vrat Ki Katha: जीवितपुत्रिका या फिर जितिया का व्रत माताएं अपनी संतान के उज्जवल भविष्य और अच्छे भाग्य के लिए रखती हैं। इस व्रत में माताएं जीमूत वाहन की पूजा अर्चना करती हैं। यह पर्व एक दिन पहले यानि नहाय खाय के साथ शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि यह व्रत माताएं रखती हैं।। ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत माताएं। यह व्रत 25 सितंबर, दिन बुधवार को पड़ रहा है। इस कठिन व्रत को करने से संतान को आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन जितिया व्रत कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए, जो इस प्रकार है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जितिया व्रत तभी फलदायी होता है जब पूजा के दौरान इसकी व्रत कथा सुनी या पढ़ी जाए। आइए जानते हैं जितिया व्रत की कथा के बारे में विस्तार से।
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार की बात है, एक ब्राह्मण की पत्नी अपने पति और बच्चों के साथ बहुत खुशहाल जीवन जी रही थी। लेकिन एक दिन उसके पति की मृत्यु हो गई, जिससे उसका जीवन दुखमय हो गया। वह अपने बच्चों के लिए बहुत चिंतित थी और भगवान से प्रार्थना करने लगी। एक दिन उसने अपने पति के प्रति अपनी समर्पण दिखाने के लिए जितिया माता की पूजा करने का फैसला किया। उसने पूरे मन से व्रत रखा और अपने पति की आत्मा की शांति और अपने बच्चों की खुशहाली के लिए जितिया माता से प्रार्थना की। व्रत के दौरान उसने विशेष भोजन का त्याग किया और पूरी रात जागकर पूजा की। उसकी भक्ति और आस्था को देखकर जितिया माता ने उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने का वचन दिया। इसके बाद उसके पति की आत्मा को शांति मिली और उसके बच्चों का स्वास्थ्य और सुख बेहतर हुआ। इस प्रकार जितिया माता की कृपा से उसका जीवन फिर से खुशहाल हो गया।
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जब जीमूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में अपना सारा राज-पाठ त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम जाने का निर्णय लिया, तो जीमूत वाहन को राजा बनने में कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने अपना साम्राज्य अपने भाइयों को सौंप दिया और पिता की सेवा के लिए वन में चले गए। जीमूतवाहन का विवाह मलयवती नामक राजकुमारी से हुआ। एक दिन जंगल में घूमते हुए जीमूतवाहन को एक बूढ़ी औरत रोती हुई दिखाई दी। बूढ़ी औरत से पूछने पर जीमूतवाहन को पता चला कि वह नाग वंश की महिला थी। बूढ़ी औरत ने आगे बताया कि सांपों ने पक्षीराज गरुड़ को भोजन के लिए प्रतिदिन सांपों की बलि देने का वचन दिया है और इसी के चलते अब बूढ़ी औरत के बेटे शंखचूड़ की बारी है।
यह सुनकर जीमूतवाहन ने महिला को भरोसा दिलाया कि वह खुद की बलि दे देगा, लेकिन महिला के बेटे को कुछ नहीं होने देगा। इसके बाद जीमूत वाहन ने शंखचूड़ से लाल कपड़ा लिया और बलि देने के लिए चट्टान पर लेट गया। जब गरुड़ आए तो उन्होंने लाल कपड़े में लिपटे जीव को देखा और उसे उठाकर पहाड़ की ऊंचाई पर ले गए। जब जीमूत वाहन उनके पंजे में फंसकर दर्द से कराहने लगा तो गरुड़ ने उसे देखा और जीमूत वाहन से पूछा कि वह कौन है और सांपों की जगह क्या कर रहा है।
इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ राजा को पूरी कहानी बताई। जीमूतवाहन की बहादुरी और बलिदान से गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए। गरुड़ राजा ने न सिर्फ जीमूत वाहन को जीवनदान दिया बल्कि यह भी प्रण लिया कि भविष्य में वह सांपों की बलि नहीं देंगे। इसी समय से जीमूतवाहन की पूजा की परंपरा शुरू हुई।
महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा अपने पिता की हत्या से बेहद क्रोधित था। उसने पांडवों से बदला लेने की ठानी और रात में उनके शिविर में घुस गया। उस समय पांच लोग सो रहे थे, जिन्हें देखकर अश्वत्थामा को लगा कि ये पांडव हैं और उसने उन्हें सोते हुए ही मार डाला। लेकिन असल में वो पांच लोग द्रौपदी के बच्चे थे। जब इस घटना के बारे में अर्जुन को पता चला
तो अर्जुन और अश्वत्थामा के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। इसके बाद युद्ध में अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्यमणि छीन ली। अश्वत्थामा का क्रोध और भी बढ़ गया और उसने बदला लेने के लिए अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया।
तब भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की रक्षा की, जो पांडवों का अंतिम वंशज भी था। उसके पुनर्जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित पुत्र रखा गया। चूंकि श्री कृष्ण ने उत्तरा की भी रक्षा की थी, जो विराट नगर की राजकुमारी और राजा विराट की पुत्री थी, इसलिए उसे जीवित्पुत्रिका कहा गया। मान्यता है कि इसी घटना के बाद से जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत की शुरुआत हुई। उत्तर प्रदेश में इस व्रत पर मुख्य रूप से श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।
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