होम / महाभारत में इस जगह पर इंद्रदेव द्वारा छुपाया गया था महायोद्धा का कवच-कुंडल, जानिए कलियुग में कहां मौजूद है वो मायावी स्थान?

महाभारत में इस जगह पर इंद्रदेव द्वारा छुपाया गया था महायोद्धा का कवच-कुंडल, जानिए कलियुग में कहां मौजूद है वो मायावी स्थान?

Preeti Pandey • LAST UPDATED : September 25, 2024, 9:09 am IST

Karna’s Kavach And Kundal: महाभारत में इस जगह पर इंद्रदेव द्वारा छुपाया गया था महायोद्धा का कवच-कुंडल

India News (इंडिया न्यूज), Karna’s Kavach And Kundal: महाभारत का जिक्र होते हीं हमारे दीमाग में महायुद्ध और उस से जुड़ी कथाएं आती हैं। इसी कड़ी से जुड़ी आज हम इस लेख में कर्ण के कवच और कुंडन से जुड़ी एक कथा जानेंगे। महाभारत के युद्ध में कर्ण को हराना आसान नहीं था क्योंकि उसके पास सूर्य देव द्वारा दिए गए कवच और कुंडल थे। इस कवच के साथ, कर्ण के हाथों अर्जुन की मृत्यु निश्चित थी। भगवान कृष्ण इस बात को लेकर काफी चिंतित थे कि कर्ण के कवच और कुंडल का क्या किया जाए। बाद में, कृष्ण ने देवराज इंद्र के साथ एक योजना बनाई। इंद्र ने खुद को एक साधु का वेश धारण किया और कर्ण के पास गए। कर्ण उस युग का सबसे बड़ा दानवीर था और वह कभी किसी को अपने दरवाजे से खाली हाथ नहीं भेजता था। इंद्र यह जानते थे। इसीलिए उन्होंने कर्ण से वादा लिया कि वह उसे जो भी मांगेगा वह देगा।

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देवराज इंद्र ने किया छल

कई जगह उल्लेख मिलता है कि कर्ण को देवराज इंद्र के छल का पता चल गया था लेकिन उसने इन्हें दान करने का वचन दिया था और वह कभी अपने वचन से पीछे नहीं हटा। इंद्र ने उससे कवच और कुंडल दान में मांगे और कर्ण ने सहर्ष उन्हें उतार कर दे दिया। इंद्र समझ गया कि कर्ण को उसकी सच्चाई पता चल गई है। इसलिए वह जल्दी से कुंडल लेकर वहां से निकल गया और अपने रथ से इंद्रलोक जाने लगा लेकिन थोड़ी दूर जाने के बाद उसके रथ का पहिया फंस गया।

उसने बहुत प्रयास किया लेकिन रथ का पहिया नहीं निकाल पाया। तभी एक भविष्यवाणी सुनाई दी, जिसमें कहा गया था कि ‘तुमने यह कवच और कुंडल छल से लिए हैं, इसलिए तुम इन्हें यहां से नहीं ले जा पाओगे।’ भविष्यवाणी सुनकर इंद्र वापस कर्ण के पास गए और उसे कवच और कुंडल लौटाने लगे लेकिन कर्ण ने कहा कि वह दान की गई चीज वापस नहीं लेता। इंद्र ने उसे उस समय एक अचूक अस्त्र दिया था और कहा था कि वह इसका इस्तेमाल केवल एक बार ही कर पाएगा। कर्ण ने इसे अर्जुन के लिए बचाकर रखा था लेकिन वह युद्ध के मैदान में इसका उपयोग करना भूल गया।

कलियुग में कहां मौजूद कवच और कुंडल?

कहा जाता है कि जब इंद्रदेव उस कवच और कुंडल को स्वर्ग नहीं ले जा सके, तो उन्होंने उसे एक समुद्र के किनारे छिपा दिया, ताकि वह किसी के गलत हाथों में न पड़ जाए। चंद्रदेव ने भी उन्हें ऐसा करते देख लिया और उसे चुराने की कोशिश की, लेकिन समुद्रदेव ने ऐसा नहीं होने दिया। कहा जाता है कि तब से समुद्र और सूर्य देवता उनकी रक्षा करते आ रहे हैं। माना जाता है कि आज भी वह ओडिशा के पुरी के पास स्थित कोणार्क के समुद्र के पास कहीं छिपा हुआ है। इसे इस तरह छिपा कर रखा गया है कि कोई उस तक नहीं पहुंच सकता।

आज ये कवच और कुंडल कहां हैं, इससे जुड़ी एक और मान्यता है। इंद्र को कवच और कुंडल की शक्ति के बारे में पता था और वह जानते थे कि अगर यह बुरे लोगों के हाथों में पड़ गया, तो यह मानव जाति के लिए विनाश का कारण बन सकता है। इस प्रकार, यह कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने कर्ण के कवच और कुंडल को कोणार्क के सूर्य मंदिर में छिपा दिया था, जबकि एक अन्य मान्यता कहती है कि कवच हिमालय की गुफाओं में छिपा हुआ है और तक्षक नाग द्वारा संरक्षित है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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