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Karva Chauth Ki Katha करवा चौथ का व्रत सुहागनें पति की दीर्ध आयु के लिए रखती हैं। यह पति-पत्नी के अखंड प्रेम और त्याग की चेतना का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं दिन भर के व्रत के बाद ईश्वर से पति की मंगलकामना चाहती हैं।
पौराणिक कथाओं में भी स्त्रियां सशक्त भूमिका में नजर आती हैं और वे अपने पति और परिवार के लिए संकटमोचक बनकर उभरती हैं। जिस देश में सावित्री जैसे उदाहरण हैं, जिसने अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए। अपने सशक्त मनोबल से यमराज को भी प्राण लौटाने के लिए विवश कर दिया था।
करवा चौथ व्रत को लेकर ये मान्यता है कि बिना कथा के इस व्रत को अधूरा माना जाता है।
प्राचीन समय में करवा नाम की एक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। उसने पत्नी को सहायता के लिए पुकारा।
करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और तत्काल धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। उसका सिरा पकड़कर करवा पति के साथ यमराज के पास तक पहुंच गई। यमराज के साथ प्रश्न उत्तर के बाद करवा के साहस को देखते हुए यमराज को उसके पति को वापस करना पड़ा।
जाते समय उन्होंने करवा को सुख-समृद्धि के साथ वर भी दिया- ‘जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा।’ इस कथा में करवा ने अपने सशक्त मनोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की। मान्यता है कि जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी।
करवा चौथ पर महिलाएं अन्न-जल त्याग कर अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है। आज के समय में करवा चौथ स्त्री-शक्ति का प्रतीक-पर्व है।
(Karva Chauth Ki Katha)
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