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प्रयागराज 2025 में लगेगा कौन-सा कुंभ? क्या आपको भी हो रही है कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ या महाकुंभ के बीच ये कन्फ्यूज़न

Prayagraj Kumbh 2025: कुंभ मेले की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Prayagraj Kumbh 2025: भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक भी है। कुंभ मेला भारत में चार प्रमुख स्थलों—प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश), और नासिक (महाराष्ट्र)—में आयोजित किया जाता है। इस आयोजन की पौराणिक मान्यता समुद्र मंथन से जुड़ी है, और यह एक दिव्य आस्था का महोत्सव है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

कुंभ मेले के प्रकार: कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, और महाकुंभ

1. कुंभ मेला:

हर 3 वर्ष में एक बार आयोजित होता है, जो चारों स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक—में बारी-बारी से होता है।

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Prayagraj Kumbh 2025: कुंभ मेले की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है।

2. अर्धकुंभ मेला:

यह प्रत्येक 6 वर्ष में प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। इसका धार्मिक महत्व कुंभ मेले से अधिक माना जाता है।

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3. पूर्णकुंभ मेला:

यह प्रत्येक 12 वर्ष में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे ही आमतौर पर “महाकुंभ” भी कहा जाता है। 2025 में प्रयागराज में पूर्णकुंभ का आयोजन होने जा रहा है, जो 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा।

4. महाकुंभ मेला:

महाकुंभ का आयोजन हर 144 वर्ष में केवल प्रयागराज में होता है। पिछली बार 2013 में यह महाकुंभ मेला आयोजित किया गया था।

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ज्योतिषीय मान्यता और समय निर्धारण

कुंभ मेले के आयोजन का निर्णय विशेष ज्योतिषीय परिस्थितियों के आधार पर किया जाता है:

हरिद्वार: कुंभ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के समय।

प्रयागराज: जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति मकर राशि में होते हैं।

नासिक: सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश के समय।

उज्जैन: सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के समय।

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कुंभ मेले का पौराणिक महत्व

कुंभ मेले की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, जिससे अमृत प्राप्त हुआ। इस अमृत कलश को पाने के लिए 12 दिनों तक देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इन 12 दिनों को मानव जीवन में 12 वर्ष के रूप में देखा जाता है। संघर्ष के दौरान अमृत की चार बूंदें धरती पर गिर गईं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में। यही स्थान कुंभ मेले के आयोजन स्थल बन गए।

शाही स्नान का महत्व

कुंभ मेले में शाही स्नान को अत्यंत पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि कुंभ मेले के दौरान इन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से प्रयागराज का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यहां त्रिवेणी संगम है, जहां गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती नदियां मिलती हैं।

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कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है। यह आयोजन मानवता, आध्यात्मिकता, और आस्था का संगम है। 2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाला पूर्णकुंभ एक बार फिर लाखों श्रद्धालुओं को मोक्ष और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करेगा। कुंभ मेला भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, जो सनातन धर्म की परंपराओं को जीवंत रखता है।

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