Hindi News / Dharam / Lord Shri Krishna Was Fighting From Both Sides In The Mahabharata War

महाभारत में सिर्फ अर्जुन के नहीं बल्कि दोनों तरफ के सारथि बने हुए थे श्री कृष्ण, दोनों ओर से लड़ रहे थे युद्ध, लेकिन कैसे?

Shree Krishna In Mahabharat: महाभारत युद्ध का यह पहलू हमें यह सिखाता है कि जीवन के हर संघर्ष में ईश्वर की अदृश्य शक्ति कार्यरत रहती है।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
Advertisement · Scroll to continue
Advertisement · Scroll to continue

India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna In Mahabharat: महाभारत, भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक ऐसा महाकाव्य है जिसमें कई रहस्यमय और चमत्कारी घटनाएँ समाहित हैं। इसमें मानव जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं का वर्णन किया गया है। महाभारत युद्ध के महान योद्धाओं के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका इसमें सबसे अद्वितीय और महत्वपूर्ण है। उनकी कूटनीति और बुद्धिमत्ता ने इस युद्ध को एक निर्णायक मोड़ पर पहुँचाया। परंतु, क्या आप जानते हैं कि इस युद्ध में सिर्फ पांडव या कौरव ही नहीं, बल्कि खुद भगवान श्रीकृष्ण दोनों पक्षों से लड़ रहे थे? यह बात किसी और ने नहीं बल्कि बर्बरीक ने पांडवों को बताई थी, जो इस युद्ध का सबसे बड़ा गवाह बने।

बर्बरीक: एक अद्वितीय योद्धा

बर्बरीक, जो महाबली भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे, महान वीर और अतुलनीय योद्धा थे। उनके पास त्रिमुखी बाण थे, जिनकी शक्ति इतनी थी कि वह एक ही बाण से युद्ध को समाप्त कर सकते थे। उन्होंने यह प्रतिज्ञा ली थी कि वह युद्ध में उस पक्ष का साथ देंगे जो कमजोर होगा। जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, तब बर्बरीक ने भी इसमें भाग लेने की इच्छा जताई।

नवरात्री के 9 दिन घर के इन कोनो में रखकर देखिये दीवे, हर रोज दीपक में डालियेगा ये सस्ती सी चीजें, पैसा गिनने का भी नहीं मिलेगा टाइम ऐसी होगी कमाई!

Shree Krishna In Mahabharat: महाभारत युद्ध का यह पहलू हमें यह सिखाता है कि जीवन के हर संघर्ष में ईश्वर की अदृश्य शक्ति कार्यरत रहती है।

महाभारत के चक्रव्यूह के अलावा भी इस काल में रचे गए थे 10 अन्य ऐसे चक्रव्यूह जिनकी खासियत जान उड़ जाएं किसी के भी होश, क्या थी व्यूहों की खासियत

जब बर्बरीक युद्धक्षेत्र की ओर बढ़ रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनका मार्ग रोक दिया और उनसे उनकी मंशा पूछी। बर्बरीक ने अपनी प्रतिज्ञा को बताया कि वह कमजोर पक्ष का साथ देंगे। श्रीकृष्ण ने उन्हें यह समझाया कि यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है, और इसे केवल युद्ध के तौर पर नहीं देखा जा सकता। इसके बाद, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनकी महान प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए उनसे शीशदान की मांग की। बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा को स्वीकार करते हुए अपने शीश का दान कर दिया।

बर्बरीक की दृष्टि से महाभारत युद्ध

बर्बरीक ने महाभारत युद्ध को देखने की इच्छा जताई, और भगवान श्रीकृष्ण ने उनके कटे हुए शीश को एक ऊँचे स्थान पर स्थापित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक पूरे युद्ध को देख सकें। युद्ध के अंत में जब पांडव विजय प्राप्त कर चुके थे, तो उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि उन्हें युद्ध में सबसे अद्वितीय और श्रेष्ठ योद्धा कौन लगा। इस पर बर्बरीक ने जो उत्तर दिया, वह अत्यंत चौंकाने वाला था।

अगर न होता ये धनुष तो किसी के बस्की नहीं था रावण का वध कर पाना, आखिर कैसे श्री राम के हाथ लगा था ये ब्रह्मास्त्र?

बर्बरीक ने कहा कि उन्होंने इस पूरे युद्ध में सिर्फ एक ही योद्धा को दोनों पक्षों से लड़ते हुए देखा, और वह योद्धा कोई और नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण थे। बर्बरीक की दृष्टि में, कौरवों और पांडवों के रूप में जो भी लड़ाई चल रही थी, वह दरअसल श्रीकृष्ण की दिव्य लीला थी। पांडवों की जीत में भी श्रीकृष्ण की ही भूमिका थी और कौरवों की हार भी उनकी इच्छा से हुई।

श्रीकृष्ण: युद्ध के अदृश्य नायक

बर्बरीक का यह कथन महाभारत के गहरे रहस्यों को उजागर करता है। महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका सिर्फ एक मार्गदर्शक या रथचालक की नहीं थी, बल्कि वह इस युद्ध के साक्षात सूत्रधार थे। उन्होंने युद्ध के विभिन्न मोड़ों पर न केवल पांडवों को जीत दिलाई, बल्कि धर्म की रक्षा भी की। यह श्रीकृष्ण की कूटनीति, उनकी नीति और उनके अवतार का ही परिणाम था कि महाभारत का युद्ध धर्म की जीत के साथ समाप्त हुआ।

आखिर वनवास ही क्यों…प्रभु श्री राम से लेकर धर्मराज युधिष्ठिर तक क्यों इन राजकुमारों को भोगना पड़ा था ये कष्ट?

बर्बरीक के दृष्टिकोण से यह साफ होता है कि महाभारत सिर्फ एक सामरिक युद्ध नहीं था, बल्कि यह एक दिव्य लीला थी, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण का हर निर्णय, हर कदम पूर्व निर्धारित था। उनका उद्देश्य अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना था। उनके बिना यह युद्ध संभवतः एक अलग दिशा में जा सकता था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध को न्याय की ओर मोड़ा और धर्म की स्थापना की।

निष्कर्ष

महाभारत युद्ध का यह पहलू हमें यह सिखाता है कि जीवन के हर संघर्ष में ईश्वर की अदृश्य शक्ति कार्यरत रहती है। बर्बरीक की दृष्टि से देखा गया यह महाभारत हमें यह संदेश देता है कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों न हो, जब धर्म की राह पर ईश्वर साथ होते हैं, तब विजय निश्चित होती है। बर्बरीक का त्याग और भगवान श्रीकृष्ण की लीला हमें यह सिखाती है कि सबसे बड़ा योद्धा वही होता है जो अपने धर्म का पालन करता है और ईश्वर की इच्छा को समझकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है।

द्रौपदी को पैदा होते ही मिली पिता की नफरत, जन्म देने वाले ने क्यों बर्बाद की बेटी की जिंदगी? किस्सा सुनकर उड़ जाएंगे होश

महाभारत के इस अद्वितीय प्रसंग से यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान श्रीकृष्ण हर समय और हर परिस्थिति में धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं, चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Tags:

DevotionalDharamKaramdharmDharmikDharmkiBaatDharmNewsindianewslatest india newsMahabharat ChakraviyuhMahabharat GathaMahabharat YuddhPaathKathayeShree KrishnaspritualSpritualitytoday india newsइंडिया न्यूज
Advertisement · Scroll to continue

लेटेस्ट खबरें

Advertisement · Scroll to continue