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भगवान विश्वकर्मा: जानिए क्यों मनाया जाता है विश्वकर्मा दिवस, महत्व और पूजा की विधि

PUBLISHED BY: India News Editor • LAST UPDATED : September 14, 2021, 2:38 pm IST
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भगवान विश्वकर्मा: जानिए क्यों मनाया जाता है विश्वकर्मा दिवस, महत्व और पूजा की विधि

भगवान विश्वकर्मा

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
भगवान विश्वकर्मा (Lord Vishwakarma) को निर्माण का देवता माना जाता है। मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के लिए अनेकों भव्य महलों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया था। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म भादो माह में हुआ था। हर साल 17 सितंबर को उनके जन्मदिवस को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इनको भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। विश्वकर्मा को देवशिल्पी यानी कि देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। इस दिन औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा करने का विधान है।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व

पंडित पंकज शास्त्री ने बताया कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था। भगवान विश्वकर्मा को ‘देवताओं का शिल्पकार’, ‘वास्तुशास्त्र का देवता’, ‘प्रथम इंजीनियर’ और ‘मशीन का देवता’ भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को ‘देव बढ़ई’ कहा गया है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि अगर मनुष्य को शिल्प ज्ञान न हो तो वह निर्माण कार्य नहीं कर पाएगा। निर्माण नहीं होगा तो भवन और इमारतें नहीं बनेंगी, जिससे मानव सभ्यता का विकास रुक जाएगा।
इसलिए सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए शिल्प ज्ञान का होना जरूरी है। इसी कारण शिल्प के देवता विश्वकर्मा की पूजा का महत्व बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है।

जानिए भगवान विश्वकर्मा के बारे में

पंडित पंकज शास्त्री ने बताया, मान्यता है कि एक बार असुरों से परेशान देवताओं की गुहार पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों से देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया। वज्र इतना प्रभावशाली था कि असुरों का सर्वनाश हो गया। विश्वकर्मा ने एक से बढ़कर एक भवन बनाए। उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया।  पंकज शास्त्री ने बताया, माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण खुद किया था। भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज के कालदंड का भी विश्वकर्मा ने ही निर्माण किया था। उन्होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्पक विमान भी बनायाद्ध

भगवान विश्वकर्मा जयंती कैसे मनाई जाती है?

विश्वकर्मा दिवस घरों के अलावा दफ्तरों और कारखानों में विशेष रूप से मनाया जाता है। जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए वे इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस दिन मशीनों, दफ्तरों और कारखानों की सफाई की जाती है। विश्वकर्मा की मूर्तियों को सजाया जाता है। घरों में लोग अपनी गाड़ियों, कंप्यूटर, लैपटॉप व अन्य मशीनों की पूजा करते है। मंदिर में विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति या फोटो की विधिवत पूजा करने के बाद आरती की जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि
  • सबसे पहले स्नान अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें।
  • उसके बाद स्नान करें।
  • घर के मंदिर में बैठकर विष्णु जी का ध्यान करें और पुष्प चढाएं।
  • एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्प डालें।
  • भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें।
  • जमीन पर आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाएं।
  • उस स्थान पर सात प्रकार के अनाज रखें।
  • अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें।
  • अब चावल पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्यान करें।
  • सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें।
  • भगवान विश्वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें।
  • अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती उतारें।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

17 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 6:07 बजे से 18 सितंबर, शनिवार को 3:36 बजे तक पूजन कर सकते हैं। केवल राहुकल के समय पूजा निषिद्ध मानी गई है। 17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक रहेगा। बाकी समय पूजा का योग रहेगा।

भगवान विश्वकर्मा जी की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥

 

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