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Maa Kalratri Aarti: मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए करें आरती और स्तोत्र, बन रहे शुभ योग

BY: Akanksha Gupta • LAST UPDATED : October 2, 2022, 1:27 pm IST
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Maa Kalratri Aarti: मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए करें आरती और स्तोत्र, बन रहे शुभ योग

Maa Kalratri Aarti

Maa Kalratri Aarti: आज 2 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां भगवती का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। कालरात्रि की पूजा के दिन इस साल शुभ योग का संयोग बन रहा है। मान्यताओं के मुताबिक इसमें शक्ति साधना से भय, संताप और अकाल मृत्यु का डर खत्म हो जाता है। शुंभ-निशुंभ का नाश कर देवी कालरात्रि ने देवी-देवताओं की रक्षा की थी। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का जाप, मंत्र और आरती करने से देवी प्रसन्न होती हैं।

मां कालरात्रि पूजा में शुभ योग

हिंदू पंचांग के मुताबिक 2 अक्टूबर 2022 रविवार को नवरात्रि की सप्तमी पर सर्वार्थ सिद्धि और सौभाग्य योग का संयोग बन रहा है।

सर्वार्थ सिद्धि योग-  2 अक्टूबर सुबह 06:20 से लेकर 3 अक्टूबर 2022 सुबह 01:53

सौभाग्य योग- 1 अक्टूबर 2022, रात 07.59 से लेकर 2 अक्टूबर 2022, शाम 05 बजकर 14 मिनट तक

मां कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली।।

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।महाचंडी तेरा अवतार।।

पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा।।

खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली।।

कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा।।

सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी।।

रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना।।

ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी।।

उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचावे।।

तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय।

शक्तिशाली मंत्र

ओम देवी कालरात्र्यै नमः

या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।

कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं हीं श्रीं मन्त्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।

कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

देवी कालरात्रि स्तोत्र पाठ

ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।

ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥

रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।

कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥

वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।

तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

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