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गरीब होकर भी पांडवों की क्यों नहीं निकल आईं हड्डियां? 13 साल सिर्फ एक रहस्यमयी चीज के सहारे कटी 6 लोगों की जिंदगी

Mahabharat Story: पांडव जब 13 वर्ष के लिए वनवास पर गए थे, तो उन्हें कभी किसी चीज की कमी का सामना नहीं करना पड़ा। वनवास में भी उन्हें तरह-तरह के दिव्य भोजन मिलते रहे। इतना ही नहीं, वनवास के दौरान मिलने आए ऋषियों और मेहमानों को पांडव स्वादिष्ट भोजन खिलाते थे, जिसमें तरह-तरह के व्यंजन शामिल होते थे। यह भोजन ऐसा होता था कि हर कोई इसकी तारीफ करता था।

BY: Preeti Pandey • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Story: जब पांडव 13 वर्ष के लिए वनवास पर गए थे, तो उन्हें कभी किसी चीज की कमी का सामना नहीं करना पड़ा। वनवास में भी उन्हें तरह-तरह के दिव्य भोजन मिलते रहे। इतना ही नहीं, वनवास के दौरान मिलने आए ऋषियों और मेहमानों को पांडव स्वादिष्ट भोजन खिलाते थे, जिसमें तरह-तरह के व्यंजन शामिल होते थे। यह भोजन ऐसा होता था कि हर कोई इसकी तारीफ करता था। इसके पीछे क्या रहस्य था? दरअसल, इसका रहस्य एक बर्तन में छिपा था जिसे चमत्कारी बर्तन कहा जाता था। इसे अक्षय पात्र भी कहा जाता था। पांडवों को यह कैसे मिला, इसके बारे में एक कहानी है। ऐसा नहीं है कि जैसे ही पांडव वनवास के लिए निकले, उन्हें यह जादुई भोजन पात्र मिल गया, जिससे उन्हें उनकी पसंद का भोजन मिलता था।

जब पांडव 13 वर्ष के लिए वनवास पर गए, तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भोजन की थी। शुरुआत में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें आधा पेट तो कई बार भूखे पेट सोना पड़ा। जंगल में पर्याप्त भोजन मिलना मुश्किल था। इसकी अपनी सीमाएं थीं। जब उनके पास बड़ी संख्या में ऋषि-मुनि और अन्य अतिथि आने लगे तो सभी को भोजन कराना बहुत कठिन हो रहा था। ऐसे में युधिष्ठिर को एक चमत्कारी बर्तन मिला, जिसके कारण उन्हें फिर कभी भोजन की कमी नहीं हुई। इस चमत्कारी बर्तन को क्या कहते थे? इसमें कुछ शर्तें भी थीं, जिसके कारण एक बार वे बड़ी समस्या में फंस गए थे।

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Mahabharat Story: गरीब होकर भी पांडवों की क्यों नहीं निकल आईं हड्डियां?

ऋषि- मुनियों का करते थे सत्कार

वे न केवल उसमें से मनचाहा खाते थे, बल्कि अपने पास आए सैकड़ों ऋषियों और मुनियों का भी बड़ा सत्कार करते थे। उन्हें बिना खाए नहीं जाने देते थे। भोजन ऐसा होता था कि सभी अतिथि और ऋषि-मुनि तृप्त होकर ही वहां से जाते थे। युधिष्ठिर को यह भोजन कैसे मिलता था? इसमें ऐसा क्या खास था कि कभी भोजन की कमी नहीं होती थी? इसके पीछे भी एक कहानी है। यह कहानी काफी रोचक है। जब पांडव वनवास समाप्त करके महल लौटे तो इसका क्या हुआ?

युधिष्ठिर ने की एक विशेष तपस्या

दरअसल, वनवास के दौरान जब पांडवों की कुटिया में अतिथि और ऋषि-मुनि आने लगे तो द्रौपदी ने युधिष्ठिर से इस समस्या का समाधान पूछा। उन्होंने जल में खड़े होकर सूर्यदेव की आराधना शुरू कर दी। जब वे कई दिनों तक ऐसा करते रहे तो सूर्यदेव प्रकट हुए। उन्होंने युधिष्ठिर से इस तपस्या के बारे में पूछा। तब युधिष्ठिर ने झिझकते हुए उन्हें पूरी बात बताई और इसका समाधान करने को कहा।

सूर्य ने दिया चमत्कारी पात्र

सूर्य देव ने युधिष्ठिर से कहा कि अब वनवास के दौरान उन्हें न केवल अपने भोजन की चिंता नहीं करनी पड़ेगी, बल्कि वे अपने यहां आने वाले सभी अतिथियों को दिव्य भोजन भी करा सकेंगे। यह कहने के बाद उन्होंने युधिष्ठिर को एक चमत्कारी पात्र दिया। इस पात्र को अक्षय पात्र कहते हैं। दरअसल, धौम्य नामक कुल पुरोहित ने युधिष्ठिर को इस संबंध में सूर्य की पूजा करने का सुझाव दिया था।

इसके साथ कुछ नियम भी थे

सूर्यदेव ने निर्देश दिया कि जब तक द्रौपदी अपना भोजन समाप्त नहीं कर लेती, तब तक यह पात्र हर दिन और हर घंटे अनंत मात्रा में भोजन देता रहेगा। इस पात्र से उन्हें चार प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, फल, सब्जियां आदि मिलते थे।

जब दुर्वासा ऋषि भोजन के लिए आए

इसके बारे में एक और कहानी भी बताई जाती है। दरअसल, वनवास के दौरान एक दिन जब पांडव और फिर द्रौपदी भोजन कर चुके थे, तब ऋषि दुर्वासा पांडवों से मिलने आए। उनके साथ उनके कई शिष्य भी थे। आते ही उन्होंने तुरंत भोजन करने की इच्छा जताई। द्रौपदी चिंतित हो गईं। इसी बीच अचानक दुर्वासा ने कहा कि वे और उनके शिष्य नदी में स्नान करके आ रहे हैं। फिर भोजन करेंगे।

संकट में द्रौपदी ने क्या किया

अब दुखी द्रौपदी ने कृष्ण से मदद की प्रार्थना की। कृष्ण प्रकट हुए। उन्होंने उनसे अक्षय पात्र लाने को कहा। उसमें चावल का एक दाना बचा था। कृष्ण ने उसे खा लिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि इस चावल के दाने से उनका पेट भर गया है अब द्रौपदी तुम चिंता मत करो। दुर्वासा और उनके शिष्य नहीं आएंगे और बिल्कुल ऐसा ही हुआ। जब दुर्वासा और उनके साथ आए लोग स्नान करके बाहर आए और उन्हें लगा कि उनका पेट भर गया है। वे स्नान करके सीधे चले गए। द्रौपदी का कष्ट टल गया।

वनवास के बाद पात्र का क्या हुआ

जब पांडवों ने अपना 13 वर्ष का वनवास पूरा किया तो अक्षय पात्र उनके साथ महल में आ गया। तब इस पात्र की जरूरत नहीं रही। हालांकि, यह पात्र उनके वनवास के दौरान एक महत्वपूर्ण संपत्ति थी, जिसके कारण उन्हें कभी भी भोजन की कमी नहीं हुई। जाहिर है कि अब उन्हें अक्षय पात्र की जरूरत नहीं रही, लेकिन चूंकि उन्हें सूर्य से यह चमत्कारी पात्र मिला था, इसलिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद का प्रतीक भी था। उन्होंने इस पात्र को महल में सजाकर सुरक्षित रख लिया।

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तब दुर्योधन क्रोधित हो गया

जब पांडव वनवास में थे, तब दुर्योधन ने उनके इर्द-गिर्द अपने गुप्तचर छोड़ रखे थे। जब उसे पता चला कि पांडवों को चमत्कारी अक्षय पात्र मिला है, तो दुर्योधन क्रोधित हो गया। वह इस बात से परेशान था कि वनवास के दौरान पांडव अपने यहां आए अतिथियों और ऋषियों को बिना किसी परेशानी के भोजन कैसे करा पा रहे थे। तब दुर्योधन ने षडयंत्र रचा और दुर्वासा ऋषि को उस समय पांडवों के पास भेजा, जब द्रौपदी भोजन कर चुकी थी। उसके बाद अक्षय पात्र से कोई भोजन प्राप्त नहीं किया जा सका। लेकिन इसका भी पांडवों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षय पात्र से केवल शाकाहारी भोजन ही मिलता था। इसमें फल, सब्जियां, अनाज और अन्य शाकाहारी खाद्य पदार्थ शामिल थे। इसमें मांसाहारी भोजन का कोई उल्लेख नहीं है। हालांकि, पांडव मांसाहारी भोजन के शौकीन थे, जिसे वे शिकार करके तैयार करते थे। यह भोजन उनके लिए विशेष रूप से भीम द्वारा पकाया जाता था, जो खाना पकाने में माहिर थे।

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