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India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Mahayagya: महाभारत के महायुद्ध और पांडवों के अज्ञातवास से जुड़े साक्ष्य और स्थान आज भी कई क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थान राजस्थान के डूंगरपुर जिले का छपी गांव है, जहां पांडवों के अज्ञातवास के दौरान बिताए गए समय के प्रमाण मिलते हैं।
महाभारत के अनुसार, कौरवों से चौसर के खेल में हारने के बाद पांडवों को 12 साल तक वनवास और 1 साल के अज्ञातवास का सामना करना पड़ा। इस दौरान, पांडव जंगलों में विभिन्न स्थानों पर रहे, और इन्हीं में से एक स्थान आज का छपी गांव माना जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छपी गांव में पांडवों ने कौरवों से जीत की कामना करते हुए एक महायज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ की शुरुआत करने के लिए पांडवों ने खुद हवन कुंड, शिवलिंग, और नंदी की मूर्तियों का निर्माण किया। इस स्थान को आज भी “पांडवों की धुनी” के नाम से जाना जाता है, जो इस घटना का प्रमाण माना जाता है।
यह कहा जाता है कि पांडवों ने इस यज्ञ को पूर्ण करने के बाद ही कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। छपी गांव में मौजूद यह धुनी, हवन कुंड, और शिवलिंग द्वापर युग के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं।
छपी गांव में पाई जाने वाली मूर्तियां और यज्ञ स्थल द्वापर युग के प्रमाण माने जाते हैं। यह स्थान आज भी स्थानीय और दूर-दराज के लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां के लोग मानते हैं कि इस स्थान का संबंध महाभारत काल के पांडवों से है, और यह स्थान उनके महान इतिहास का साक्षी है।
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यह स्थल न केवल पांडवों के जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण क्षणों को याद दिलाता है, बल्कि यह स्थान हिंदू धर्म के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल भी है। यह स्थान महाभारत के उस काल को उजागर करता है जब पांडवों ने भगवान शिव की पूजा करके कौरवों पर विजय प्राप्त की थी।
छपी गांव, अपने इतिहास और धार्मिक महत्व के कारण, महाभारत के समय के अद्वितीय साक्ष्यों को समेटे हुए है, जो आज भी शोधकर्ताओं, इतिहासकारों, और धार्मिक अनुयायियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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