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Mahavir Jayanti 2024: क्या है महावीर जयंती का महत्व, जाने इस दिन का इतिहास – Indianews

India News (इंडिया न्यूज), Mahavir Jayanti: समस्त संसार में विभिन्न संस्कृति और मान्यताओं वाले लोग है। विश्व में प्रत्येक धर्म और त्योहारों का महत्व अत्यंत उच्च है। इन त्योहारों के माध्यम से हम अपने ऐतिहासिक और धार्मिक धारावाहिकों को स्मरण करते हैं और उनके संदेशों को आज के समय में भी अपनाने का प्रयास करते हैं। […]

BY: Itvnetwork Team • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Mahavir Jayanti: समस्त संसार में विभिन्न संस्कृति और मान्यताओं वाले लोग है। विश्व में प्रत्येक धर्म और त्योहारों का महत्व अत्यंत उच्च है। इन त्योहारों के माध्यम से हम अपने ऐतिहासिक और धार्मिक धारावाहिकों को स्मरण करते हैं और उनके संदेशों को आज के समय में भी अपनाने का प्रयास करते हैं। एक ऐसा ही महत्वपूर्ण त्योहार है ‘महावीर जयंती’, जो भगवान महावीर के जन्मदिन पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म उत्सव जैन अनुयायी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

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महावीर जयंती का महत्व

जैन समुदाय के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है, लेकिन इसका महत्व समाज के अन्य वर्गों के लिए भी है।महावीर जयंती के दिन, लोग अपने घरों को सजाकर, विशेष पूजा-अर्चना करके और उनके उपदेशों को स्मरण करके त्योहार मनाते हैं। समाज में धार्मिक विधियों का पालन किया जाता है और लोग अपने आस-पास के विभिन्न जैन मंदिरों में दर्शन और पूजा के लिए जाते हैं। इस दिन जैन संप्रदाय के लोग भगवान महावीर के जीवन और उनके संदेशों को स्मरण करते हैं। भगवान महावीर ने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, ध्यान और सम्यक ज्ञान के महत्व को प्रमाणित किया। उनके उपदेशों ने समाज को एक शांतिपूर्ण, सहिष्णु और समरस धर्मिक दृष्टिकोण दिया।

ऐसे मिला केवल ज्ञान

भगवान महावीर के प्रारम्भिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में कमल के समान रहे। उसके बाद बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना में वे इतने लीन हो गए कि उनके शरीर के कपड़े गिरकर अलग होते गए। भगवान महावीर की बारह वर्ष की मौन तपस्या के बाद उन्हें ‘केवलज्ञान ‘ प्राप्त हुआ । केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद तीस वर्ष तक महावीर ने जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की रचना की।

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क्यों लिया महावीर ने दीक्षा का निर्णय?

महावीर की दीक्षा का महत्वपूर्ण स्थान हिंदू धर्म और जैन धर्म के इतिहास में है। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण था जब वे आध्यात्मिक उन्नति की ओर अपने कदम बढ़ाया। महावीर, जिनका जन्म वीरासन्धा के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था, जन्म से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति और धर्माचरण की ओर प्रवृत्त हो गए थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने संसारिक बंधनों से मुक्त होकर संन्यास लेने का निर्णय लिया। महावीर की दीक्षा का अर्थ होता है उनका संन्यास और आध्यात्मिक जीवन के दिशा में प्रवेश। उन्होंने संयम, तप, और ध्यान में लगने का निश्चय किया। इस दौरान, उन्होंने भिक्षुक के रूप में विश्व भर में भटकते हुए अपना ध्यान और धर्म प्रचार किया। महावीर की दीक्षा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति थी। उन्होंने अपने आध्यात्मिक अनुभव के माध्यम से मनुष्यों को जीवन का उद्देश्य समझाने की कोशिश की।

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महावीर द्वारा दी गई शिक्षा

जैन धर्म के एक प्रमुख धार्मिक आध्यात्मिक गुरु थे महावीर। उनका जीवन और उनकी शिक्षाओं में विवेक, संयम, और अहिंसा के महत्व को प्रमुखतः उजागर किया गया। महावीर की शिक्षा विशेष रूप से जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत मूल्यवान है। महावीर की शिक्षा का मुख्य आधार अहिंसा और अपने जीवन में संयम का विशेष महत्व था। उन्होंने जीवन में हिंसा को नकारने और शांति और सामंजस्य की ओर प्रेरित किया। उनके शिष्यों को संग्रह का महत्व बताते हुए उन्होंने सम्यक्त्व (सही ज्ञान, सही चरित्र और सही आचरण) की महत्वपूर्णता को भी जानकारी दी। महावीर का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे अपने अंतर में स्थित शांति और संयम का अनुभव करके हम समृद्ध और संतुलित जीवन जी सकते हैं। उनकी शिक्षाएं हमें संतुलित जीवन जीने की और समाज में सामंजस्य और शांति का संदेश देती हैं।

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महावीर का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे अपने अंतर में स्थित शांति और संयम का अनुभव करके हम समृद्ध और संतुलित जीवन जी सकते हैं। उनकी शिक्षाएं हमें संतुलित जीवन जीने की और समाज में सामंजस्य और शांति का संदेश देती हैं।

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