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India News(इंडिया न्यूज),Makar Sankranti 2024: आज पूरे देश में मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2024) को लेकर उत्साह देखा जा रहा है। जाहिर सी बात है मकर संक्रांति का त्योहार भारत के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। ये सूर्य देव को समर्पित है और सर्दियों के अंत का प्रतीक है। इसे फसल उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। वहीं इस बार का मकर संक्रांति को लेकर आपके मन में कई सारे सवाल आ रहे है आज हम आपके उसी सवाल का जवाब देंगे। बता दें कि, 15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति पर 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का संयोग बन रहा है। वहीं इस दिन बुध और मंगल भी एक ही राशि धनु में विराजमान रहेंगे।
वहीं बात अगर मुहूर्त की करें तो उदयतिथि के अनुसार, मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी 2024 (Makar Sankranti 2024) को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्य रात 2 बजकर 54 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। जिसके बाद मकर संक्रांति पुण्यकाल – सुबह 07 बजकर 15 मिनट से शाम 06 बजकर 21 मिनट तक है। वहीं मकर संक्रांति महा पुण्यकाल -सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक मनाया जाएगा।
वहीं बात अब अगर पूजन विधि की करें तो, इस दिन सूर्यदेव को जरूर जल अर्पित करना चाहिए। सूर्यदेव पर लोहबान दे धूप करें। फिर सूर्यदेव के नाम का दीपक जलाएं। उसके बाद सूर्यदेव पर उड़द की खिचड़ी और तिल के लड्डू का भोग लगाकर गरीबों में दान करें। तांबे के लोटे में पानी में काले तिल और गुड़ मिलाकर सूर्यदेव को अर्ध्य दे। इसके साथ ही हरिवंश पुराण का पाठ करें। ऊं सूर्याय नमः मंत्र का जाप करें। वहीं लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें और सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।
मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि (मकर नक्षत्र या राशि चक्र) में संक्रमण का प्रतीक है। यह लंबे दिनों की शुरुआत का संकेत देता है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है, यही कारण है कि इस अवधि को उत्तरायण के रूप में जाना जाता है और इसे बहुत शुभ माना जाता है।
इस त्यौहार का धार्मिक और मौसमी दोनों महत्व है। प्राचीन काल में, सूर्य के बदलाव और उसके परिणामस्वरूप लंबे दिनों तक मौसम के बदलाव का जश्न मनाया जाता था। इसे आशा और सकारात्मकता का संकेत माना गया है।
मकर संक्रांति से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। देश के कुछ हिस्सों में यह माना जाता है कि संक्रांति नाम के देवता ने शंकरासुर का वध किया था। उसके एक दिन बाद, देवता ने किंकरासुर नामक एक और राक्षस को मार डाला, यही कारण है कि उस दिन को किंक्रांत के नाम से भी जाना जाता है।
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