धर्म

Jivitputrika Vrat: इस दिन माताएं रखेंगी जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें क्या है इसकी पौराणिक कथा

India News (इंडिया न्यूज), Jivitputrika Vrat Date: सच ही कहा गया है कि एक मां अपने बच्चों के लिए अपनी जान तक दे सकती है। एक मां के आर्शिवाद में कितनी ताकत होती है इसी के महत्व से जुड़ा एक त्योहार जीवित्पुत्रिका पास आ रहा है। हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का बहुत महत्व है। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं। पुराणों की मानें तो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और संतान की सुरक्षा और  लंबी उम्र की कामना करती हैं। माताएं पूरे 24 घंटे कर भूखी रहती हैं। इस साल अगले माह यानि अक्टूबर के 6 तारीख को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाएगा।

पूजा की विधि

  • सप्तमी को उड़द की दाल भिगो कर रखी जाती है।
  • कई स्थानों पर इसमें गेहूं भी मिला दिया जाता है।
  • उसका बाद अष्टमी को प्रातः काल व्रती महिलाओं को उनमें से कुछ दाने साबुत ही निगलना होता है।
  • इसके बाद व्रती महिलाएं न तो कुछ खाती हैं और न ही कुछ पीती हैं।
  • इस दिन पर उड़द और गेहूं के दाने का बहुत महत्व माना जाता है।

पौराणिक व्रत कथा

अपने अपमान का बदला लेने के भाव से अश्वत्थामा ने अमोघ अस्त्र का प्रयोग अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर किया, ताकि पांडवों का वंश ही समाप्त हो जाए। अमोघ अस्त्र चलने पर पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली तो उन्होंने भी शरणागत की रक्षा का वचन दिया।

इसके बाद अति सूक्ष्म रूप में उत्तरा के पेट में प्रवेश कर उसके गर्भ की रक्षा की, किंतु जब पुत्र पैदा हुआ तो वह मृतप्राय था। घर वाले तो दुख और निराशा में फंसे थे, तभी श्रीकृष्ण ने वहां पहुंचकर उस बालक में प्राणों का संचार किया। वही पुत्र पांडवों का वंशधर परीक्षित के नाम से जाना गया। परीक्षित को इस प्रकार से जीवनदान देने के कारण ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। व्रत रखने वाली महिलाओं द्वारा उड़द या गेहूं के साबुत दानों को निगलना ही श्रीकृष्ण का सूक्ष्म रूप में उदर में प्रवेश माना जाता है।

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Reepu kumari

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