India News(इंडिया न्यूज), Mystery of Goddess Mundeshwari Temple Kaimur: सनातन परंपरा, जिसे दुनिया की सबसे प्राचीन जीवन शैली और धार्मिक संस्कृति माना जाता है, में ‘बलि’ जैसे शब्द को विवादित बना दिया गया है। इसका एक खास अर्थ और छवि बना दी गई है, जिसमें बलि का मतलब किसी जीव की हत्या मान लिया जाता है। लेकिन यह धारणा न केवल सनातन परंपरा की गहराई को गलत ढंग से प्रस्तुत करती है, बल्कि इसके मूल अर्थ और महत्व को भी अनदेखा करती है।
बलि का अर्थ संस्कृत में ‘आहुति’, ‘दान’ और ‘अर्पण’ है। अंग्रेजी में इसे ‘ऑफरिंग’ कहा जाता है, जो किसी वस्तु या सेवा को देवता या किसी उच्च शक्ति को समर्पित करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह पवित्रता और निस्वार्थता का प्रतीक है। ऋग्वेद (1/114/8) की यह ऋचा इस बात को स्पष्ट करती है:
Mundeshwari Temple Kaimur: देवी का एक ऐसा अद्भुत दरबार जहां बकरे पर चावल का एक दाना भी दिया जाएं फेंक तो वो हो जाता है बेहोश आखिर क्या है ये अक्षत बलि का राज
“मा नो गोषु, मा नो अश्वेसु रीरिषः”
अर्थ: हमारी गायों और घोड़ों को मत मारो।
बालकनी में लगा लीजिए ये एक पौधा देखते ही कोसों दूर भाग जाएंगे कबूतर, नहीं पड़ेगी राहु की दृष्टि
ऋग्वेद की यह ऋचा यह बताती है कि बलि का अर्थ जीव हत्या नहीं है। वैदिक काल में बलि का उद्देश्य अहिंसा और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना था। यजुर्वेद और सामवेद के विभिन्न अध्यायों में पशु हत्या को पाप करार दिया गया है। इनमें विशेष रूप से भेड़, बकरी, गाय, घोड़े, और पक्षियों जैसे जीवों की हत्या पर रोक लगाई गई है।
वैदिक काल के बाद कुछ कालखंडों में बलि प्रथा का विकृत स्वरूप सामने आया। इसमें यह मान्यता विकसित हुई कि बकरे, मुर्गे या अन्य जीवों की बलि से देवता प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह धारणा न केवल तंत्र-मंत्र की आड़ में फैलाई गई, बल्कि इसे धर्म के नाम पर सही ठहराने का प्रयास किया गया। हालांकि, यह पूरी तरह से सनातन परंपरा के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां बलि की प्रथा अहिंसक रूप में प्रचलित है। यहाँ बलि के लिए अक्षत (चावल) का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया प्रतीकात्मक होती है और इसमें किसी जीव को नुकसान नहीं पहुंचता। अक्षत को देवी के चरणों में अर्पित किया जाता है, जिसके बाद वह शक्ति जागृत करने का माध्यम बनता है।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मन्नत के लिए लाए गए बकरे को देवी के चरणों में लिटाया जाता है और उस पर अक्षत फेंका जाता है। इसके बाद बकरा कुछ क्षणों के लिए मूर्छित हो जाता है और फिर सामान्य अवस्था में लौट आता है। इस प्रक्रिया में न तो किसी जीव की हत्या होती है और न ही खून बहता है। यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि बलि का अर्थ जीव हत्या नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक समर्पण है।
मुंडेश्वरी मंदिर षटकोणीय आकार में बना है, जो इसे अद्वितीय और रहस्यमयी बनाता है। यह मंदिर तीसरी-चौथी शताब्दी का है और इसके प्राचीन सिक्के और शिलालेख इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं। गुप्त वंश के समय के बाद भी यह मंदिर देवी शक्ति के जागृत स्थल के रूप में पूजित है।
सनातन परंपरा में बलि का वास्तविक अर्थ ‘दान’ और ‘अर्पण’ है, न कि जीव हत्या। वैदिक ग्रंथ और पौराणिक कथाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं। मुंडेश्वरी मंदिर की अहिंसक बलि प्रथा इस सत्य को उजागर करती है कि सनातन धर्म में प्रकृति और जीवों के प्रति करुणा सर्वोपरि है। बलि को लेकर बनी नकारात्मक धारणाओं को दूर करने के लिए इस परंपरा के मूल भाव को समझना और प्रचारित करना आवश्यक है।