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क्या थी वो बड़ी वजह जिसके चलते नारद जी ने दे दिया भगवान विष्णु को श्राप? भयंकर था उसका प्रकोप!

क्या थी वो बड़ी वजह जिसके चलते नारद जी ने दे दिया भगवान विष्णु को श्राप? भयंकर था उसका प्रकोप, What was the big reason due to which Narad ji cursed Lord Vishnu? His anger was terrible-IndiaNews

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Narad Ji Cursed Lord Vishnu: नारद जी को भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता है। उन्हें समस्त ब्रह्मांड में कहीं भी भ्रमण करते हुए देखा गया है, और किसी भी अवस्था में भी वे नारायण नाम का जाप नहीं भूलते। हालांकि, एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु अपने वैकुण्ठ धाम में चित्रकला में व्यस्त थे। जब देवर्षि नारद वहां पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि देवादि देव, महादेव, ब्रह्मदेव आदि सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आग्रह किया था, लेकिन भगवान विष्णु चित्रकला में व्यस्त थे।

नारद जी को सभी देवताओं का प्रतीक्षा में खड़े रहना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने इसके बाद माता लक्ष्मी के पास जाकर पूछा कि भगवान विष्णु किसके चित्रण में व्यस्त हैं। माता लक्ष्मी ने मंद मुस्कान के साथ उत्तर दिया कि श्री हरि अपने सबसे प्रिय भक्त देवर्षि नारद की तस्वीर बना रहे हैं। इस समाचार से नारद जी को उम्मीद हुई कि भगवान विष्णु उन्हें ही चित्रित कर रहे होंगे।

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तो ये थी श्राप की बड़ी वजह

नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और उनके बन रहे चित्र को देखने की कोशिश की। उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु एक गंदे और अर्धनग्न व्यक्ति का चित्र बना रहे थे। नारद जी को यह दृश्य देखकर बहुत गुस्सा आया कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के प्रती नहीं, बल्कि एक अपरिचित और अशुद्ध व्यक्ति के प्रति इतनी ध्यान दे रहे हैं। उनका गुस्सा इतना बढ़ गया कि वे पृथ्वी लोक पर चले गए। कुछ दिनों तक वे भ्रमण करते रहे।

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नारद जी को भगवान विष्णु का उस तरह अज्ञात व्यक्ति के चित्रण में व्यस्त पाकर गुस्सा आया। वे पृथ्वी पर भ्रमण करते रहे और उस व्यक्ति की दिनचर्या को देखने लगे। उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति मंदिर नहीं जाता और न ही भगवान की पूजा करता है। इससे उनके मन में संदेह पैदा हुआ कि ऐसे व्यक्ति को भगवान विष्णु का इतना प्रिय कैसे माना जा सकता है।

नारद जी का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे उस व्यक्ति को इतना प्रिय क्यों मानते हैं, जो भगवान की पूजा और मंदिर जाने में बेमानी से असमर्थ है। इस श्राप का परिणाम त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार, श्री राम के समय में देखा गया।

यह सत्य था कि उस व्यक्ति ने अपने कर्मों के द्वारा भगवान विष्णु की पूजा की थी। वह नियमित रूप से अपने कर्मों को समर्पित करता था और भगवान विष्णु से इसी तरह निरंतर अपने कर्मों को बिना किसी द्वेष या दुविधा के स्वीकार करता था।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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