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खुद को न जान पाना ही अध्यात्म का दुख

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: आज जिस दुख का आभास लोगों को नहीं है और वह है अध्यात्म। अध्यात्म का दु:ख अपने आप को न जान पाना है। चूंकि व्यक्ति आध्यात्मिक नजर से जीवन देखता नहीं तो उसको इस दु:ख का पता भी नहीं है। इसी तरह पांच सुखों में अध्यात्म सुख भी होता है। प्रभु […]

BY: Sunita • UPDATED :
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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
आज जिस दुख का आभास लोगों को नहीं है और वह है अध्यात्म। अध्यात्म का दु:ख अपने आप को न जान पाना है। चूंकि व्यक्ति आध्यात्मिक नजर से जीवन देखता नहीं तो उसको इस दु:ख का पता भी नहीं है। इसी तरह पांच सुखों में अध्यात्म सुख भी होता है। प्रभु का ध्यान अध्यात्म सुख है। समाज में हर तरह के विचार के व्यक्ति होते हैं। कुछ पैसे की नजर से ही हर स्थिति, परिस्थिति और व्यक्तियों को देखते हैं। कुछ शारीरिक नजर से हर समय, हर किसी को परखते हैं। कुछ लोग भावुकता के पलड़े में सबको तौलते हैं। बुद्धि से विचार करने वाले तो कम ही होते हैं। सबसे कम होते हैं अध्यात्म की नजर से संसार को देखने वाले। इसका अर्थ धार्मिक नजर नहीं है।

आध्यात्मिक पहलू का अर्थ है जीवन को यथार्थ से देखना

इस संसार में पांच तरह के सुख हैं। धन का, तन का, मन का, बुद्धि तथा अध्यात्म का। आपने मिठाई खरीदी तो धन का सुख, खाई तो तन का सुख, पोते-पोती को दी तो मन का सुख, स्कूल में प्रथम आए तो बुद्धि का सुख इत्यादि। परंतु प्रभु का ध्यान अध्यात्म के सुख के क्षेत्र में आता है। पांच तरह के दु:ख भी होते हैं। आपके हजार रुपए खो गए तो धन का दु:ख, शरीर का कोई अंग खराब हो गया तो तन का दु:ख, छोटी उम्र में परिवार में कोई व्यक्ति गुजर गया तो मन का दु:ख, पर कोई व्यक्ति परिवार में मानसिक संतुलन खो गया तो बुद्धि का दु:ख, परंतु सबसे बड़ा दुख जो बहुत कम लोगों को होता है उस दु:ख का आभास भी लोगों को नहीं है और वह है अध्यात्म का दु:ख। अध्यात्म दु:ख अपने आप को न जान पाना है। चूंकि व्यक्ति आध्यात्मिक नजर से जीवन देखता नहीं तो उसको इस दु:ख का पता भी नहीं है। अध्यात्म की नजर से देखें तो वास्तविकता में न सुख है, न दुख है।

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pleasure and pain तो मात्र एक विचार

एक के लिए एक घटना दु:ख का संदेश लाती है, तो दूसरे लिए वही घटना भविष्य के लिए सुख की आहट देती है। अब हम बात करेंगे मीडिया की खबरों पर! नि:संदेह हमें खबरों को हर स्तर से देखना चाहिए। पैसा, स्वास्थ्य, परिवार, समाज, ये हमारे अभिन्न अंग हैं। परंतु सबसे विशाल तो अध्यात्म का पहलू है। यह मानना बचकाना होगा कि हर खबर सिर्फ़ एक स्तर पर हिट होती है। ऐसा नहीं होता। हर खबर का असर व्यापक होता है। वह नजर बाद में आए पर उसकी पहुंच बहुत ऊंची और गहरी होती है। एक खबर दु:खदायी मालूम पड़ती है। परंतु उससे अनेक लोगों को सुख मिलता होगा और शायद एक खबर सुखदायी मालूम पड़ती हो, लेकिन उससे अनेक लोगों के घर में दु:ख का माहौल हो जाता होगा। किसी भी खबर का असर अच्छा या बुरा नहीं होता। हर खबर को साक्षी भाव से देखिए। तो उतनी परेशानी नहीं होगी जितनी बनाई जाती है।

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