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नम्रता और निष्काम सेवा के मोती

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज नम्रता एक ऐसा दुर्लभ सदगुण है जिसे हमें अपने जीवन में धारण करना है। नम्रता का अर्थ ऐसे भाव से जीना है कि हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं। जब हमें यह अहसास होता है कि प्रभु की नजरों में सब एक समान हैं, तो दूसरों के प्रति […]

BY: Sunita • UPDATED :
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संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

नम्रता एक ऐसा दुर्लभ सदगुण है जिसे हमें अपने जीवन में धारण करना है। नम्रता का अर्थ ऐसे भाव से जीना है कि हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं। जब हमें यह अहसास होता है कि प्रभु की नजरों में सब एक समान हैं, तो दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार नम्र हो जाता है। जब हमारा अहंकार खत्म हो जाता है तो हमारा घमण्ड और गर्व मिट जाता है। तब हम किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाते। हम महसूस करते हैं कि प्रभु की दया से हमें कुछ पदार्थ मिले हैं और जो पदार्थ हमें दूसरों से अलग करते हैं वे भी प्रभु के दिए उपहार हैं। अपने भीतर प्रभु का प्रेम अनुभव करने से हमारे अन्दर नम्रता आती है। तब हर चीज में हमें प्रभु का हाथ नजर आता है। हम देखते हैं कि करनेहार तो प्रभु हैं। जब हमारे अन्दर इस तरह की आत्मिक नम्रता का विकास होता है तब हमारे अन्दर धन, मान-प्रतिष्ठा, ज्ञान और सत्ता का अहंकार नहीं आ पाता। कहा जाता है कि जहाँ प्रेम है, वहाँ नम्रता है।

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हम जिनसे प्यार करते हैं उनके आगे अपनी शेखी नहीं बघारते, न ही उन पर क्रोध करते हैं। हमें उन लोगों के प्रति भी इसी तरह का व्यवहार करना चाहिए जिनसे हम अपरिचित हैं। यह भी कहा जाता है कि जहाँ प्यार है, वहाँ नि:स्वार्थ सेवा का भाव होता है। हम जिनसे प्रेम करते हैं उनकी सहायता करना चाहते हैं लेकिन हमें जो भी मिले, हमें उसकी मदद करनी चाहिए क्योंकि सब में प्रभु की ज्योति है। अपने भीतर नम्रता विकसित करने का एक तरीका है – ध्यान का अभ्यास। जब हम अपने अन्तर में स्थित प्रभु की ज्योति एवं शब्द से जुड़ते हैं तो हमसे प्रेम, नम्रता और शांति का प्रवाह होता है। हम दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा करते हैं ताकि उनके दु:ख-तकलीफ कम हो सकें। जीवन के तूफानी समुद्र में हम एक दीप-स्तम्भ बन जाते हैं।

समुद्री तूफान के समय जब जहाज और नावें रास्ता भटक जाते हैं तो वे हमेशा दीप-स्तम्भ की ओर देखते हैं। एक बार अन्तर में प्रभु की ज्योति का अनुभव पाने और यह अहसास करने के बाद की हम प्रभु के अंश हैं, हम एक सच्चे इंसान के प्रतीक बनकर, एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह दूसरों को सहारा देते हैं, उन्हें राह दिखाते हैं। जब हम प्रभु के प्रेम से भर उठते हैं हम देखते हैं कि इससे हमारे जीवन में टिकाव आया है। हम पाते हैं कि जो खुशी और दिव्य आनन्द हमें ध्यान-अभ्यास के दौरान मिलता है वह केवल उसी समय के लिए नहीं होता बल्कि उसके बाद भी हमारे साथ बना रहता है। इसका हमारे दैनिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हमारे आसपास के लोग भी इससे अछूते नहीं रहते।

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