India News (इंडिया न्यूज), Pitru Paksh 2024: 17 सितंबर से शुरू हो रहा पितृ पक्ष भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करके उनके लिए विशेष अनुष्ठान और तर्पण करते हैं। यह अवधि 15 दिनों की होती है, जिसमें हम अपने पितरों को आमंत्रित मानते हैं और उनके लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान पितर धरती पर आते हैं, और उनका संबंध प्रकृति से भी जुड़ा होता है। आइए, इस लेख में जानते हैं कि पितृ पक्ष के समय आपके घर में पितर किन-किन रूपों में आ सकते हैं और उन्हें कैसे सम्मानित किया जा सकता है।
हिंदू परंपरा में, पितृ पक्ष पितृ पक्ष के पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित है, विशेष रूप से:
1. पिता (पिता)
2. दादा (पितामह)
3. परदादा (प्रपितामह)
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने से माना जाता है:
1. पैतृक पूर्वजों का सम्मान और उन्हें प्रसन्न करना
2. उनका आशीर्वाद प्राप्त करना
3. उनकी मुक्ति (मोक्ष) सुनिश्चित करना
4. पारिवारिक वंश और विरासत को बनाए रखना
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पितृ पक्ष के दौरान कुछ सामान्य प्रथाओं में शामिल हैं:
1. पूर्वजों को भोजन (तर्पण) और जल अर्पित करना
2. अनुष्ठान और पूजा करना
3. तिल और चावल चढ़ाना
4. पवित्र नदियों या तीर्थ स्थलों पर जाना
हिंदू परंपरा में, श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जाने वाला एक अनुष्ठान है। मान्यता के अनुसार, श्राद्ध न करने से दुर्भाग्य और परेशानियाँ हो सकती हैं।
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यहाँ 5 संभावित परेशानियाँ बताई गई हैं जिनका सामना व्यक्ति को करना पड़ सकता है:
1. पूर्वजों की नाराज़गी: माना जाता है कि श्राद्ध न करने से व्यक्ति के पूर्वज नाराज़ होते हैं, जिससे वे क्रोधित और नाराज़ होते हैं।
2. पारिवारिक समस्याएँ: ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध न करने से पारिवारिक विवाद, अशांति और घरेलू जीवन में समस्याएँ हो सकती हैं।
3. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध न करने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और बीमारियाँ आती हैं, खासकर उस व्यक्ति को जिसे यह अनुष्ठान करना चाहिए था।
4. वित्तीय कठिनाइयाँ: ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध न करने से वित्तीय कठिनाइयाँ, नुकसान और अस्थिरता हो सकती है।
5. आध्यात्मिक स्थिरता: ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध न करने से आध्यात्मिक विकास और प्रगति में बाधा आती है, जिससे व्यक्ति के पूर्वजों और विरासत से दूरी और वियोग होता है।
कृपया ध्यान दें कि ये मान्यताएं विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में अलग-अलग हो सकती हैं, तथा हर कोई इन विचारों से सहमत नहीं हो सकता है।
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