India News (इंडिया न्यूज), Tota Mukhi Hanuman Chitrakoot: भगवान राम ने अपने वनवास की यात्रा चित्रकूट से होकर पूरी की थी। अयोध्या से चित्रकूट की दूरी करीब 270 किलोमीटर है। इस यात्रा में करीब 140 किलोमीटर की दूरी सुमंत्र ने रथ पर तय की और उसके बाद पैदल चलकर चित्रकूट पहुंचे। इस धर्म नगरी में हनुमान जी की विशेष मान्यता है। यहाँ उनकी पूजा तोते के रूप में की जाती है। मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री राम अपना वनवास काट रहे थे, तब हनुमान जी ने चित्रकूट में अवतार लिया था। आज भी वे इस नगर की रक्षा कर रहे हैं और तोते के मुख वाले हनुमान जी के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहाँ आते हैं। यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है, जहाँ कोई भी हनुमान जी की पूजा कर उनकी शक्ति का अनुभव कर सकता है।
चित्रकूट के तोता मुखी हनुमान मंदिर के पुजारी मोहित दास के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्री राम किस्किन्धा पर्वत पर निवास करते थे, जहां हनुमान जी भी उनके साथ थे। जब भगवान राम को साढ़े 11 वर्ष का वनवास दिया गया तो वे भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ चित्रकूट चले गए, जबकि हनुमान जी वहीं अकेले रहे। मान्यता है कि इस दौरान हनुमान जी ने रामायण लिखी थी। जब उन्होंने इसे वाल्मीकि जी को दिखाया तो वाल्मीकि जी ने इसे पढ़कर कहा कि यह अच्छी है, लेकिन बाद में उन्होंने यह सोचकर रामायण में खामियां निकालीं कि अगर वे इसकी प्रशंसा करेंगे तो लोग उनकी अपनी रामायण को नहीं पढ़ेंगे। इस तरह हनुमान जी द्वारा लिखी गई रामायण को समुद्र में फेंक दिया गया।
ऐसा माना जाता है कि कलयुग में वाल्मीकि जी ने तुलसीदास जी के रूप में अवतार लिया और रामायण लिखना शुरू किया। इस दौरान भगवान ने तुलसीदास जी से कहा कि आपकी रामायण दरअसल हनुमान जी ने लिखी थी, जिसे वाल्मीकि जी ने पहले समुद्र में फेंक दिया था। इस प्रकार यह कथा बताती है कि तुलसीदास जी ने हनुमान जी की महिमा और उनके कार्यों को पुनर्जीवित करने का काम किया है।
पुजारी मोहित दास के दावे के मुताबीक रामचरितमानस का पाठ हकीकत में हनुमान जी की वाणी से हुआ है। जबकि इसे लिखने का काम तुलसीदास जी ने किया है। हनुमान जी ने भगवान राम से शिकायत की थी कि उनका स्थान चित्रकूट में नहीं है, जबकि वे वहीं रहते हैं। तब भगवान राम ने कहा कि कलयुग में तुलसीदास जी नाम का एक भक्त होगा, मुझे दिखाओ कि आप चित्रकूट में तोते के रूप में किसके यहां अवतार लेंगे। मान्यता है कि हनुमान जी ने चित्रकूट में तोते के रूप में अवतार लिया था और आज भी वे इसी रूप में यहां मौजूद हैं और चित्रकूट की रक्षा कर रहे हैं।
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