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इतना बड़ा पाप करने के बाद भी रावण ने आखिर क्यों श्री राम की विजय पूजा के लिए कर दिया था मां सीता को उनके हवाले?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 29, 2024, 9:50 am IST
इतना बड़ा पाप करने के बाद भी रावण ने आखिर क्यों श्री राम की विजय पूजा के लिए कर दिया था मां सीता को उनके हवाले?

Shree Ram & Ravan: भगवान राम ने इस जानकारी के बाद रावण को शिव पूजा के लिए निमंत्रण भेजा। रावण, जो भगवान शिव का परम भक्त था, इस निमंत्रण को स्वीकार करने में हिचकिचाए बिना आगे बढ़ा। रामेश्वरम पहुंचकर, रावण ने भगवान शिव की पूजा विधिपूर्वक की।

India News (इंडिया न्यूज), Shree Ram & Ravan: भारत के पौराणिक इतिहास में रावण का नाम अक्सर नकारात्मक संदर्भों में लिया जाता है, लेकिन उनकी विद्या और ज्ञान का भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। रावण न केवल एक शक्तिशाली लंका नरेश था, बल्कि एक प्रकांड पंडित और भगवान शिव का परम भक्त भी था। उनकी रचनाओं में सबसे प्रसिद्ध है “शिवताण्डव स्तोत्र”, जो उनकी धार्मिक आस्था और ज्ञान का प्रतीक है। इस लेख में हम एक विशेष पौराणिक कथा के माध्यम से जानेंगे कि कैसे भगवान श्रीराम ने रावण का सम्मान किया और उन्हें अपनी पूजा में शामिल किया।

पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, जब भगवान राम लंका पर रावण से युद्ध के लिए निकले, तो उन्होंने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित करने का निश्चय किया। शिवलिंग की पूजा के लिए एक विद्वान की आवश्यकता थी, जो कि इस महत्त्वपूर्ण कार्य को संपन्न कर सके। भगवान राम ने अपने अनुयायियों से पूछा कि सबसे बड़ा पंडित कौन है। सभी ने एक स्वर में कहा कि रावण से बड़ा कोई विद्वान नहीं है।

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भगवान राम ने इस जानकारी के बाद रावण को शिव पूजा के लिए निमंत्रण भेजा। रावण, जो भगवान शिव का परम भक्त था, इस निमंत्रण को स्वीकार करने में हिचकिचाए बिना आगे बढ़ा। रामेश्वरम पहुंचकर, रावण ने भगवान शिव की पूजा विधिपूर्वक की।

पूजा का महत्व

इस पूजा के दौरान रावण ने शिवलिंग की स्थापना की और उसकी पूर्ण विधि के साथ आराधना की। पूजा समाप्त होने के बाद, भगवान राम ने रावण से विजय प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। रावण ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, “विजयी भवः”, जो इस बात का प्रतीक है कि रावण ने राम की महानता को पहचाना और उन्हें सम्मानित किया।

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निष्कर्ष

यह कथा केवल युद्ध और प्रतिकूलताओं की नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, श्रद्धा और सम्मान का भी प्रतीक है। रावण की विद्या और भगवान राम की विनम्रता हमें यह सिखाती है कि किसी व्यक्ति का मूल्य उसके ज्ञान और गुणों में होता है, न कि उसकी स्थिति या कार्यों में। इस प्रकार, रावण का सम्मान और भगवान राम का विनम्रता से भरा व्यवहार हमें प्रेरित करता है कि हम हमेशा ज्ञान और विद्या की सराहना करें, चाहे वह किसी भी रूप में हो।

यह कथा न केवल हमारे पौराणिक इतिहास को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि महानता हमेशा किसी न किसी रूप में सामने आती है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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