India News (इंडिया न्यूज), Ravana Broken Shani Dev Leg: सभी नौ ग्रहों में शनिदेव की गति सबसे धीमी है। इसी धीमी गति के कारण शनि एक राशि में ढाई वर्ष (30 महीने) तक रहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि की धीमी गति का कारण दशानन रावण है। कहा जाता है कि रावण ने क्रोध में शनिदेव का पैर तोड़ दिया था और तब से शनि की गति धीमी हो गई। विजय दशमी के इस अवसर पर आइए आपको बताते हैं कि रावण ने शनिदेव का पैर क्यों तोड़ा।
रावण बहुत ही घमंडी और विद्वान था। अपनी शक्तियों के बल पर वह किसी को भी पराजित करने की शक्ति रखता था। रावण को शास्त्रों की भी बहुत अच्छी समझ थी। रावण चाहता था कि उसका पुत्र भी उसके जैसा ही बलवान और सर्वशक्तिमान हो। जब मंदोदरी के गर्भ में रावण का पुत्र पल रहा था, तो उसने योजना बनाई कि उसका बच्चा ऐसे नक्षत्रों में जन्म ले, जिससे वह बहुत शक्तिशाली और दीर्घायु हो। रावण से पैदा हुआ यह बच्चा मेघनाद था।
Shani Trayodashi: शनि त्रयोदशी के दिन गलती से भी जो कर दिया ऐसा काम
इस योजना के बाद रावण ने सभी ग्रहों को अपने अधीन कर लिया और उन्हें शुभ और श्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया। रावण की शक्तियों और अहंकार से भयभीत होकर सभी ग्रहों ने उसकी आज्ञा मान ली। लेकिन शनिदेव रावण के अहंकार के आगे आसानी से झुकने वाले नहीं थे। रावण जानता था कि शनिदेव न्याय के देवता हैं और उन्हें मनाए बिना उसका पुत्र लंबी आयु का वरदान नहीं पा सकेगा।
तब रावण ने अपनी शक्ति का प्रयोग करके शनि को नियंत्रित किया। चूंकि शनि न्याय के देवता हैं, इसलिए रावण ने कुछ समय तक उन्हें नियंत्रित किया, लेकिन जैसे ही मेघनाद के जन्म का समय आया, शनि मार्गी से वक्री हो गए। यानी शनि ने तुरंत अपनी सीधी चाल पलट दी। शनि की वक्री चाल के कारण मेघनाद की आयु कम रही। यह शनि का प्रकोप ही था, जिसके कारण मेघनाद छोटी उम्र में ही महायुद्ध में मारा गया। जब रावण को शनि के वक्री होने का पता चला, तो वह क्रोधित हो गया। गुस्से में उसने अपनी तलवार से शनि के पैर पर वार किया। कहा जाता है कि उस दिन से शनि लंगड़ाकर चलते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, रावण ने अपनी शक्तियों से शनि को नियंत्रित किया था। वह शनि को अपने सिंहासन के पास अपने पैरों के नीचे रखता था। कुछ समय बाद उसने शनि को कारागार में डाल दिया और वहां एक शिवलिंग स्थापित कर दिया, ताकि शनि उसे पार करके कभी यहां से भाग न सकें। हालांकि जब हनुमान श्री राम का संदेश लेकर माता सीता के पास गए और लंका दहन किया तो उन्होंने शनिदेव को अपने कंधे पर बिठाकर रावण की कैद से मुक्त कराया था।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।