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कौन थी रावण की वो बेटी जो करना चाहती थी हनुमान से विवाह, जानें पूरी कहानी!

कौन थी रावण की वो बेटी जो करना चाहती थी हनुमान से विवाह, जानें पूरी कहानी, Who was Ravana's daughter who wanted to marry Hanuman, know the whole story-IndiaNews

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज़), Ravan & Hanuman: रावण की बेटी का नाम स्वर्णमंचला था, जिसे कई कथाओं में सोरनका भी कहा जाता है। यह कथा रामायण के मुख्य पाठ में नहीं पाई जाती है, लेकिन कुछ लोक कथाओं और पुरानी कथाओं में इसका वर्णन मिलता है।

कहानी के अनुसार, जब हनुमान जी लंका में सीता माता की खोज में आए थे, तो उनकी मुलाकात स्वर्णमंचला से हुई थी। स्वर्णमंचला हनुमान जी के वीरता और शक्ति से प्रभावित हुई और उनसे विवाह करना चाहती थी। लेकिन हनुमान जी ने स्पष्ट किया कि वे केवल भगवान राम के प्रति समर्पित हैं और उनका जीवन का उद्देश्य केवल सीता माता और भगवान राम की सेवा करना है।

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स्वर्णमंचला ने हनुमान जी के प्रति अपने प्रेम और इच्छा को त्याग कर उनके धर्म और कर्तव्य की सराहना की। यह कथा हनुमान जी के धैर्य, विवेक और भगवान राम के प्रति उनके अद्वितीय समर्पण को दर्शाती है।

स्वर्णमंचला, जिसे सोरनका भी कहा जाता है, रावण की पुत्री थी। यह कहानी मुख्य रामायण में नहीं मिलती, लेकिन कुछ प्राचीन लोक कथाओं और पुरानी ग्रंथों में इसका उल्लेख है।

कहानी के अनुसार, जब हनुमान जी लंका में माता सीता की खोज करने आए थे, तब उनकी भेंट स्वर्णमंचला से हुई। हनुमान जी के अद्भुत पराक्रम, उनकी शक्ति और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्वर्णमंचला ने उनसे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। स्वर्णमंचला को हनुमान जी का तेजस्वी और महान स्वरूप इतना भाया कि वह उनसे विवाह करने के लिए आतुर हो गई।

हनुमान जी, जो भगवान राम के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे, ने स्वर्णमंचला की इस इच्छा को शालीनता से ठुकरा दिया। उन्होंने स्वर्णमंचला को समझाया कि उनका जीवन केवल भगवान राम और माता सीता की सेवा के लिए समर्पित है। उनके जीवन का उद्देश्य धर्म का पालन और प्रभु राम के कार्य को पूरा करना है।

स्वर्णमंचला ने हनुमान जी के इस निर्णय को समझा और उनके धर्म और निष्ठा का आदर किया। उसने हनुमान जी की भक्ति और समर्पण की प्रशंसा की और अपने हृदय में उनके प्रति सम्मान बनाए रखा।

यह कथा हनुमान जी के धैर्य, उनकी विवेकशीलता और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करती है। स्वर्णमंचला की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और सम्मान तब होता है जब हम दूसरे के धर्म और कर्तव्य को समझते और स्वीकारते हैं।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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