संबंधित खबरें
महाकुंभ में किन्नर करते हैं ये काम…चलती हैं तलवारें, नागा साधुओं के सामने कैसे होती है 'पेशवाई'?
सोमवती अमावस्या के दिन भुलकर भी न करें ये काम, वरना मुड़कर भी नही देखेंगे पूर्वज आपका द्वार!
80 वर्षों तक नही होगी प्रेमानंद जी महाराज की मृत्यु, जानें किसने की थी भविष्यवाणी?
घर के मंदिर में रख दी जो ये 2 मूर्तियां, कभी धन की कमी छू भी नही पाएगी, झट से दूर हो जाएगी कंगाली!
इन 3 राशियों के पुरुष बनते हैं सबसे बुरे पति, नरक से बदतर बना देते हैं जीवन, छोड़ कर चली जाती है पत्नी!
अंतिम संस्कार के समय क्यों मारा जाता है सिर पर तीन बार डंडा? जानकर कांप जाएगी रूह
India News (इंडिया न्यूज), Ravan Ke Dadaji Pulatsya Rishi: रावण के दादाजी, ऋषि पुलस्त्य, भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका चरित्र न केवल रामायण से जुड़ा है, बल्कि अन्य पुराणों और महाभारत में भी उल्लेख मिलता है। पुलस्त्य ऋषि की महानता उनके तपस्वी जीवन, योग विद्या के ज्ञान और पुराणों के रचयिता होने में निहित है।
पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं। उन्हें महाज्ञानी, योगी और पुराणों का महान रचयिता माना गया है। वामन पुराण की कथा उन्होंने देवर्षि नारद को सुनाई थी, और महाभारत में भी उन्हें प्रमुख ज्ञान देने वालों में से एक माना जाता है। महाभारत के अनुसार, भीष्म को ज्ञान पुलस्त्य ऋषि ने ही प्रदान किया था।
अपनी मृत्यु को आता देख भी नहीं रुका था जब रावण, ये 5 लोग भी बने थे रक्षक लेकिन नहीं हुआ कोई फायदा?
पुलस्त्य ऋषि रावण के दादाजी थे। उनके पुत्र ऋषि विश्रवा थे, जिनसे रावण का जन्म हुआ। ऋषि विश्रवा ने राक्षस राजकुमारी कैकसी से विवाह किया था, जिससे रावण, कुंभकर्ण और विभीषण का जन्म हुआ। पुलस्त्य ऋषि की कृपा से रावण और उसका परिवार कई असाधारण शक्तियों से संपन्न हुआ। एक प्रसंग के अनुसार, जब रावण को कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन ने बंदी बना लिया था, तब पुलस्त्य ऋषि ने अपने पोते को बंदी ग्रह से मुक्त कराया था।
पुलस्त्य ऋषि की तपस्या में एक बार अप्सराओं ने बाधा डाल दी थी, जिससे उन्होंने श्राप दिया कि जो भी स्त्री उनके सामने आएगी, वह गर्भवती हो जाएगी। इस श्राप के चलते उन्हें वैशाली के राजा की पुत्री इडविला से विवाह करना पड़ा, और उनकी संतान ऋषि विश्रवा बने।
अपनी मृत्यु को आता देख भी नहीं रुका था जब रावण, ये 5 लोग भी बने थे रक्षक लेकिन नहीं हुआ कोई फायदा?
द्वापर युग में कृष्ण काल के दौरान पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दिया था। उन्होंने गोवर्धन की सुंदरता देखकर उसे काशी ले जाने की इच्छा जताई थी, लेकिन गोवर्धन कृष्ण धाम छोड़ने के इच्छुक नहीं थे। इस पर ऋषि पुलस्त्य ने उन्हें श्राप दिया कि वह धीरे-धीरे तिल-तिल कर घटते चले जाएंगे। आज भी गोवर्धन इस श्राप से जूझ रहा है और माना जाता है कि वह धीरे-धीरे जमीन में समा रहा है।
पुलस्त्य ऋषि रावण की महान क्षमताओं और शक्ति के बड़े प्रशंसक थे। हालांकि, रावण के कई बुरे कर्मों के बावजूद पुलस्त्य ऋषि ने कभी उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। उनकी इस उदासीनता ने रावण को अपने दुष्कृत्यों में और अधिक साहसी बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप रावण का अंत हुआ।
क्या रावण भी चाहता था मोक्ष पाना…हर साल जला देने के बावजूद भी कैसे हर बार जिन्दा हो उठता है रावण?
पुलस्त्य ऋषि की जीवन गाथा न केवल ऋषियों की महान परंपरा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि महान शक्ति और ज्ञान का उपयोग सही दिशा में होना चाहिए। उनके जीवन से जुड़े ये तथ्य न केवल पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह भी सिखाते हैं कि गलतियों पर नियंत्रण करना आवश्यक है, चाहे वह हमारे निकटतम लोगों से ही क्यों न हो।
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.