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वो एक श्राप और 12 साल का वियोग…किसने दिया था श्री कृष्ण और रुक्मणि को ऐसा श्राप जिसमे भोगना पड़ा 12 साल की प्रेम पीड़ा?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 7, 2024, 10:15 am IST
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वो एक श्राप और 12 साल का वियोग…किसने दिया था श्री कृष्ण और रुक्मणि को ऐसा श्राप जिसमे भोगना पड़ा 12 साल की प्रेम पीड़ा?

Shree Krishna & Rukmani: ऋषि दुर्वासा ने अपने क्रोध में आकर उन्हें दो भयंकर श्राप दिए। पहला श्राप यह था कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को 12 वर्षों तक वियोग में रहना पड़ेगा, और दूसरा श्राप यह था कि द्वारका की भूमि का पानी खारा हो जाएगा। इस श्राप के कारण, रुक्मिणी को द्वारका से दूर एक अलग स्थान पर रहना पड़ा

India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna & Rukmani: यह कथा भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के बीच हुए 12 साल के वियोग का एक अद्वितीय और भावपूर्ण प्रसंग है, जो ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण घटित हुआ। इस कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी देवी ऋषि दुर्वासा को सम्मान देने उनके आश्रम पहुंचे थे। दुर्वासा ऋषि का स्वभाव क्रोधी और कठोर था, और उन्हें किसी भी बात पर क्रोधित होना सरल था।

ऋषि दुर्वासा की शर्त

जब ऋषि ने श्रीकृष्ण और रुक्मिणी से अपने रथ को खुद खींचने की शर्त रखी, तो भगवान ने इसे विनम्रता से स्वीकार कर लिया। उनकी भक्ति और सम्मान को दर्शाने के लिए वे घोड़ों की जगह स्वयं रथ खींचने लगे। लेकिन जब रुक्मिणी देवी को प्यास लगी और श्रीकृष्ण ने उनके लिए गंगा जल उत्पन्न किया, तो वे दुर्वासा ऋषि से जल की अनुमति माँगना भूल गए, जो उनके क्रोध का कारण बना।

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ऋषि दुर्वासा ने अपने क्रोध में आकर?

ऋषि दुर्वासा ने अपने क्रोध में आकर उन्हें दो भयंकर श्राप दिए। पहला श्राप यह था कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी को 12 वर्षों तक वियोग में रहना पड़ेगा, और दूसरा श्राप यह था कि द्वारका की भूमि का पानी खारा हो जाएगा। इस श्राप के कारण, रुक्मिणी को द्वारका से दूर एक अलग स्थान पर रहना पड़ा, और यही कारण है कि रुक्मिणी का मंदिर द्वारका से अलग स्थित है।

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श्राप से मुक्ति के लिए रुक्मिणी देवी ने 12 वर्षों तक की तपस्या

श्राप से मुक्ति के लिए रुक्मिणी देवी ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिसके बाद ही वे श्रीकृष्ण के पास वापस द्वारका लौट सकीं। यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान भी अपने भक्तों और गुरुओं के प्रति पूर्ण सम्मान रखते हैं, और उनके आशीर्वाद और क्रोध से बचने के लिए हमेशा विनम्रता और आदर का पालन करना चाहिए।

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कथा का यह प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के प्रेम, सम्मान, और धैर्य का प्रतीक है, जो भारतीय पौराणिक कथाओं में विशेष स्थान रखता है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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