Hindi News / Dharam / Satyaki The Great Warrior Of Mahabharata Who Was The Shadow And Best Charioteer Of Shri Krishna

कौन थे श्रीकृष्ण के वो सार्थी जो प्रभु के संग रहते थे किसी साये की तरह, महाभारत के आधार पर रखा गया था नाम?

Shri Krishna Sathi Satyaki: सात्यकि की कहानी यह साबित करती है कि कभी-कभी महाभारत के प्रमुख युद्धकांडों के बीच, एक नायक की वीरता और बलिदान को सही मूल्य नहीं मिलता।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News Delhi (इंडिया न्यूज़), Shri Krishna Sathi Satyaki: महाभारत के महाकवि वेदव्यास ने बहुत से पात्रों की कहानियों को चित्रित किया है, लेकिन कई बार कुछ पात्रों की महत्वपूर्ण भूमिकाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऐसा ही एक पात्र है – सात्यकि। जो न केवल महाभारत के युद्ध में एक प्रमुख योद्धा थे, बल्कि उनकी भूमिका और बलिदान को अक्सर कम सराहा गया है।

सात्यकि, श्रीकृष्ण की द्वारका में स्थित सेना के एक उच्च अधिकारी सत्यक के पुत्र थे। उनके नाम का अर्थ भी उनके पिता सत्यक के नाम से जुड़ा हुआ था। सात्यकि की शिक्षा और प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि वे अर्जुन के शिष्य थे। अर्जुन, जो स्वयं एक महान धनुर्धर और महाकवि थे, ने सात्यकि को युद्धकला में पारंगत किया।

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श्रीकृष्ण और सात्यकि की सांठ-गांठ

सात्यकि की गुरु अर्जुन के प्रति निष्ठा और सम्मान इतनी गहरी थी कि उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध करने का कोई इरादा नहीं किया। श्रीकृष्ण ने सात्यकि की इस निष्ठा को समझा और उन्हें पांडवों की ओर से युद्ध की अनुमति दी। श्रीकृष्ण ने पांडवों की सेना में सात्यकि को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया, क्योंकि उनका युद्ध कौशल और धनुर्विद्या में दक्षता अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

महाभारत के युद्ध के दौरान, सात्यकि ने अपने अद्भुत कौशल से सभी को चकित कर दिया। उन्होंने कृतवर्मा जैसे प्रमुख योद्धा का वध किया, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। कर्ण, जो स्वयं एक अद्वितीय और शक्तिशाली योद्धा थे, को भी सात्यकि ने हराया। उनकी यह विजय इस बात की गवाही देती है कि सात्यकि ने युद्ध कौशल में कितनी ऊँचाई हासिल की थी।

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कृष्ण के इतने बड़े मिशन में सिर्फ सात्यकि थे उनके सार्थी?

महाभारत के युद्ध से पूर्व, जब श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर में शांति संदेश पहुंचाने की यात्रा की थी, तो इस महत्वपूर्ण मिशन पर केवल सात्यकि ही उनके साथ थे। यह उनके प्रति श्रीकृष्ण के विश्वास और उनके अद्वितीय कौशल को दर्शाता है।

सात्यकि की कहानी यह साबित करती है कि कभी-कभी महाभारत के प्रमुख युद्धकांडों के बीच, एक नायक की वीरता और बलिदान को सही मूल्य नहीं मिलता। फिर भी, उनका योगदान न केवल युद्ध के परिणाम को प्रभावित करता है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि हर भूमिका, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, महत्वपूर्ण होती है और प्रत्येक पात्र की अपनी विशिष्टता होती है। सात्यकि का जीवन और उनकी वीरता महाभारत के अदृश्य नायकों की गाथा में एक अनमोल रत्न की तरह है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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