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Scientific Importance of Shivling : शिवलिंग का वैज्ञानिक महत्व

PUBLISHED BY: Sameer Saini • LAST UPDATED : March 29, 2022, 4:47 pm IST
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Scientific Importance of Shivling : शिवलिंग का वैज्ञानिक महत्व

Scientific Importance of Shivling

Scientific Importance of Shivling

गोपाल गोस्वामी, नई दिल्ली :

Scientific Importance of Shivling शिवलिंग, भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरुप है। महर्षि वेदव्यास ने इसकी व्याख्या ब्रह्म और जीव के परस्पर सम्बन्ध की मानवोचित सूझ के रूप की थी। परन्तु, दैवीय ज्ञान के इस प्रतीक और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों की व्याख्या करने वाले उन ऋषियों के ज्ञान की अर्वाचीन विद्वानों द्वारा गलत व्याख्या की गई, जिंसके कारण शिव तथा शिव पूजा के साथ ही शिवलिंग संबंधी हमारी अवधारणा अथवा दृष्टिकोण भी दूषित हो गया था।

पश्चिमी विद्वानों द्वारा दुष्प्रचार किया गया था कि शिवलिंग की पूजा आदिवासियों द्वारा शुरू की गई थी और हिंदुओं ने इसे वहीं से आत्मसात किया था,इस मिथ्या को हमारे अपने बुद्धिजीवियों ने भी समर्थन किया. लेकिन, इस महान वैदिक ज्ञान प्रणाली के वाहक कहलाने वाले हमारे ऋषि मुनियों ने उस समय जब पश्चिमी दुनिया एक सभ्यता की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही थी, हमें उस समय वेद और उपनिषद के रूप में सर्वोत्कृष्ट ज्ञान संपदा उपलब्ध कराई, जिन्हें अंधविश्वासी, विकृत व अनैतिक कहकर कलंकित किया गया था।

उन्होंने ब्रह्मचर्य के कठोर अभ्यास के माध्यम से इस दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया, जिसमें तत्वों और भगवान की गहराई से समझ का अभ्यास और अध्ययन शामिल है। उन्होंने ही अपनी तपस्या से अर्जित हुई जानकारी या समझ को शिवलिंग के रूप में प्रदर्शित किया है, क्योंकि हम उस ज्ञान को नहीं समझ सके इसलिए उनके ऊपर अज्ञानी का ठप्पा लगाना विचित्र बात है।

Scientific Importance of Shivling

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भगवान शिव का कोई रूप नहीं है और इसे समझना हमारी समझ से परे है। शिवलिंग को ‘चिह्न या प्रतीक’ के रूप में परिभाषित किया गया है। समस्त कंपनियों, वस्तुओं, ऑपरेशन्स, यातायात संबंधी संकेतों, और अनेक उद्यमों के लिए अनेक प्रकार के प्रतीकों व लोगो (logo) का उपयोग किया जाता है।

उदाहरण के लिए, कमल के फूल के चिह्न को देखकर लोग समझ जाते हैं कि यह भाजपा का प्रतीक है, और हाथ को देखकर लगता है कि कांग्रेस का प्रतीक है, ठीक उसी तरह ‘शिवलिंग’ भगवान शिव का प्रतीक है। महाभारत के अनुशासन पर्व 14 के अनुसार, ब्रह्मा का लिंग कमल है, विष्णु का चक्र है और इंद्र का वज्र है, इसलिए प्रतीक के रूप में लिंग का महत्व हमारे सभी शास्त्रों में देखा जा सकता है।

शिव लिंग की पूजा केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं थी। प्रत्युत रोमन सभ्यता के लोग (जिन्होंने यूरोप में शिव लिंग पूजा की शुरुआत की थी) ने लिंग को ‘प्रयापास’ के रूप में संदर्भित किया है। प्राचीन मेसोपोटामिया के एक शहर बेबीलोन में पुरातात्विक खुदाई के दौरान शिवलिंग मिले थे। तदतिरिक्त, हड़प्पा-मोहनजोदारो और कच्छ के धोलावीरा में पुरातात्विक खोज के दौरान अनेक शिवलिंग मिलने की घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि हजारों वर्ष पूर्व एक अत्यधिक विकसित सभ्यता का अस्तित्व था व शिवपूजा भारत ही नहीं वरन विश्व में प्रसारित थी।

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शिवलिंग को तीन घटकों में विभाजित किया गया है। चतुर्पक्षीय घटक नीचे होता है, जबकि अष्टपक्षीय मध्य खंड आधार अथवा आसन सहित होता है। ऊपरी भाग, जो पूजनीय होता है, वह गोलाकार होता है। गोलाकार भाग की ऊंचाई इसकी परिधि का एक तिहाई होता है। ब्रह्मा सबसे नीचे आधार में होते हैं, विष्णु मध्य में, और शिव शीर्ष पर हैं। इसके शीर्ष पर विद्यमान जल की निकासी के लिए आधार पर एक नली भी होती है।

लिंगम भगवान शिव की सृजनात्मक और विध्वंशकारी शक्तियों का प्रतीक है, और इनके भक्त इसकी पूजा अर्चना करते हैं। उसे लिंग यानि पुरुष जननांग कहना अत्यंत निम्न कोटि की मानसिकता प्रदर्शित करता है, किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित हो लोगों को शिवलिंग की गलत व्याख्या कर भ्रमित करे ।

हिंदू धर्म पुर्णतः वैज्ञानिक आधार पर केन्द्रित है। शोध और प्रेक्षण के माध्यम से मानव के अभौतिक अथवा भौतिक ब्रह्मांड संबंधी ज्ञान के संवर्धन हेतु किये जाने वाले निरंतर प्रयास का नाम ही विज्ञान है। दूसरी ओर, हिंदू धर्म में उन विशेष प्रश्नों अथवा विषयों का उत्तर देने की क्षमता है जहाँ विज्ञान भी असमर्थ होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ मूढ़ आलोचक शिव लिंग की कल्पना पुरुष जननांग के रूप में करते है और इसे अश्लीलता के साथ जोड़ते है, यह लोग सहजता से यह भूल जाते हैं कि आधार से लिंग कैसे बन सकता है?

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चूंकि शिव को किसी विशेष ‘रूप’ में नहीं माना जाता है, इसलिए यह दावा करना कि शिवलिंग एक पुरुष के जननांग जैसा दिखता है, अत्यंत मिथ्यापूर्ण व मूर्खता है। शिव लिंग का आकार एक अंडे की तरह होता है, जो ‘ब्रह्माण्ड’ का प्रतीक होता है। शिव लिंग सम्पूर्ण ब्रह्मांड को निरूपित करता है। एक अंडाकार ‘अंडे’ के लिए यदि कहा जाए तो इसकी न तो कोई आरंभ है और न ही कोई अंत।

शिव लिंग पर यदि सतही दृष्टि डालें तो ध्यान आता है कि यह एक ऐसा स्तंभ है जिसपर तीन रेखाएं (त्रिपुण्ड) होती हैं, जिसके नीचे चक्राकार आधार है और इसके चारों ओर कुंडली मारे हुए एक कोबरा सांप लिपटा हुआ है जो इसके ऊपर अपने नुकीले दांतों की चमक बिखेर रहा है। डेनिश वैज्ञानिक नील बोहर के वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि अणु परमाणुओं से बने होते हैं, जिनमें प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं।

ये सभी शिव लिंग की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन, अणु और ऊर्जा के स्थान पर प्राचीन ऋषियों ने लिंगम, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति (जिसे रेणुका और रुद्राणी में विभाजित किया गया है) और सर्प जैसे शब्दों का उपयोग किया। स्तंभ अग्नि का एक स्तंभ है जो सनातन शास्त्रों के अनुसार त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर को दर्शाता है, जबकि चक्राकार आधार शक्ति को निरूपित करता है। चक्राकार आधार के चारों ओर तीन लकीरें उकेरी गई हैं।

महाभारत के रचियता महर्षि वेदव्यास के अनुसार शिव प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉनों जैसे उप-परमाणु कणों से भी अत्यंत सूक्ष्म हैं। साथ ही, उन्होंने शिव को सबसे बड़ा माना है। शिव जीवन की समस्त जीवन शक्ति का स्रोत है। शिव सजीव और निर्जीव सभी प्रकार के जीवन के प्रवर्तक हैं। वे शाश्वत हैं, वे जन्म और मृत्यु से परे हैं। वे अज्ञात हैं और ध्यान तथा कल्पना से परे हैं। उन्हें आत्मा की आत्मा के रूप में जाना जाता है। वे सहानुभूति, करुणा और उत्साह से भी परे हैं।

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शिव लिंग में एकाग्रता को जागृत करने और किसी का भी ध्यान केंद्रित करने की एक असामान्य या अकथनीय क्षमता होती है। लंका जाने से पहले, श्रीराम और लक्ष्मण ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए रामेश्वरम में एक शिवलिंग स्थापित किया था, और रावण एक बालक द्वारा भूमि पर रखे गए शिवलिंग को उठाने में असमर्थ हो गया था।
इन उदाहरणों से पता चलता है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि और सुविधानुसार भगवान की कल्पना कर सकता है और उनकी उपासना भी कर सकता है।

यह वह दैवीय ऊर्जा है जिसकी शिव के रूप में महाभारत काल में अर्जुन और रामायणकाल में भगवान राम और सीता ने निर्गुण ब्रह्म, या निराकार सर्व शक्तिमान के रूप पूजा की थी। सनातन हिंदू धर्म लोगों को मानने या न मानने, विश्वास करने या न करने, साकार या निराकार उपासना, लिंगहीन या लिंग रूप में अपनी श्रद्धानुसार भगवान अथवा ब्रह्म के किसी भी रूप की पूजा करने की अनुमति देता है।

आइए अब सनातन हिंदू धर्म व भगवान शिव के वैज्ञानिक पहलुओं पर एक दृष्टि डालते हैं:

डेनिश भौतिक विज्ञानी नील बोहर के निष्कर्षों के अनुसार, परमाणु की संरचना की पूर्ण समझ होना आवश्यक है, जिसका यहाँ उल्लेख किया गया है :

  • परमाणु प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बना होता है। न्यूट्रॉन एक सीधी रेखा में गति करते हैं क्योंकि उनके पास कोई आवेश नहीं होता है।
  • परमाणु का नाभिक धनावेशित प्रोटोनों और तटस्थ रूप (न्यूट्रल) न्यूट्रॉनों से बना होता है। परमाणु के नाभिक में उसका लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान होता है। नाभिक परमाणु के केंद्र में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का अत्यंत सघन क्षेत्र होता है।
  • क्योंकि इलेक्ट्रॉन ऋणावेशित होते हैं, इसलिए वे धनावेशित प्लेट की ओर वक्राकार पथ में गति करते हैं।
  • दूसरी ओर इलेक्ट्रिक्ली परमाणु पूर्णतः तटस्थ अथवा न्यूट्रल होता है क्योंकि इसमें ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन और धनावेशित प्रोटॉन समान संख्या में होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर बहुत तीव्र गति से चक्राकार पथ में परिक्रमण करते हैं जिन्हे ऊर्जा के स्तर या कक्षा (एनर्जी लेवल) कहा जाता है। इन एनर्जी लेवल्स को नाभिक से बाहर की ओर गिना जाता है।
  • प्रत्येक एनर्जी लेवल में ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा होती है।
  • जब तक इलेक्ट्रॉन एक ही एनर्जी लेवल पर घूमते हैं और परमाणु स्थिर अवस्था में रहते हैं, तब तक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  • बोहर के मॉडल के अनुसार, परमाणुओं में इलेक्ट्रॉन विभिन्न ऊर्जा कक्षाओं में नाभिक की परिक्रमा करते हैं। यह सूर्य के चक्कर लगाने वाले ग्रहों के समान होता है।
    बोहर मॉडल के प्रकाश में शिवलिंग का विश्लेषण करने से गूढ़ सत्य का अनावरण होता है कि ब्रह्म ने ब्रह्मांड का सृजन किया है। शिवलिंग प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और ऊर्जा के व्यवहार को विस्तारपूर्वक दर्शाता है। जैसे कि:
  • विष्णु धनात्मक विद्युत आवेश के साथ एक प्रोटॉन है।
  • महेश एक न्यूट्रॉन है जिसपर कोई विद्युत आवेश नहीं होता है।
  • ब्रह्मा ऋणात्मक विद्युत आवेशित इलेक्ट्रॉन है।
  • शक्ति ऊर्जा का प्रतीक है। शक्ति एक प्रकार का ऊर्जा क्षेत्र है जिसे चक्र द्वारा दर्शाया जाता है।
  • शिव लिंग परमाणु संरचना का निरूपण करता है। शिव और विष्णु दोनों को लिंग द्वारा दर्शाया गया है। परमाणु संरचना में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, जो तीव्र गति से विचरण करने वाले इलेक्ट्रॉनों से घिरे होते हैं।
  • शक्ति को एक अंडाकार चक्र के रूप में दिखाया गया है, जिसकी परिधि के चारों ओर तीन लकीरें उभरी हुई हैं। वह ऊर्जा है, और ब्रह्मांड में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • विष्णु के चित्र में विष्णु की नाभि से कमल खिलता हुआ दिखाई देता है, जिसके ऊपर ब्रह्मा विराजमान होते हैं। कमल ऊर्जा का प्रतीक है, जिसमें आकर्षित करने की क्षमता होती है। अपने लचीलेपन के कारण कमल का तना झुक सकता है, यह दर्शाता है कि ब्रह्मा विष्णु के चारों ओर विचरण करते रहते हैं। इसका अर्थ यह है कि इलेक्ट्रॉन विपरीत विद्युत आवेश के कारण प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है।

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शिव (जिसका कोई आवेश नहीं होता है) को न्यूट्रॉन के रूप में दिखाया गया है। न्यूट्रॉन लगभग प्रोटॉन के आकार के ही होते हैं; हालांकि, उनके ऊपर विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के नाभिक में, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन परस्पर कसकर बंधे होते हैं। जब परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन समान होते हैं, तो परमाणु स्थिर होता है। इस प्रकार, प्राचीन ऋषियों ने कहा कि शिव शांत होते हैं वे न तो परेशान होते हैं और न ही विभाजित। शिव शांत रहते हैं क्योंकि शक्ति रेणुका का रूप धारण करती है। अणुओं को बनाने वाली ऊर्जा को संस्कृत में इसकी संयोजकता अर्थात रेणुका द्वारा दर्शाया जाता है। रेणु अथवा किसी रसायन के निर्माण के लिए रेणुका की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

एक अणु दो परमाणुओं से बना होता है।इसी के फलस्वरूप, प्राचीन हिंदू ऋषियों ने शिव की पत्नी के रूप में और शिव के एक अभिन्न भाग के रूप में, पूरे समय शिव के चारों ओर नृत्य करते हुए,शक्ति की अवधारणा को प्रतिपादित किया था। प्राकृतिक आपदाएं तब होती हैं जब न्यूट्रॉन टूट जाता है और अलग हो जाता है, जिसके कारण शक्ति एक विनाशक के रूप में बदल जाती है जिसे रुद्राणी (काली) के रूप में जाना जाता है, जो विनाशकारी नृत्य करती है, जिसके कारण प्राकृतिक आपदा आती है।

अणुओं का वास्तविक जनक अथवा सृजक इलेक्ट्रॉन है, जो ब्रह्मा का प्रतीक है। वर्तमान भौतिक विज्ञान के अनुसार, परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों के आदान-प्रदान से एक अणु बनता है। इसका अर्थ यह हुआ की आधुनिक विज्ञान हिंदू आस्थाओं का समर्थन करता है कि ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी।

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विज्ञान के अनुसार शिवलिंग पर चढ़ाये गए पानी को पवित्र नहीं माना जाता है। शिव लिंग को एक परमाणु मॉडल कहा जाता है। लिंग विकिरण का उत्सर्जन करता है क्योंकि यह एक प्रकार के ग्रेनाइट पत्थर से बना होता है। ग्रेनाइट विकिरण उत्सर्जित करता है और इसकी सुरक्षा के बारे में चिंताओं को बढ़ाते हुए, बढ़ती हुई रेडियोधर्मिता को प्रदर्शित किया गया है। ग्रेनाइट को लावा (जो सैकड़ों अथवा लाखों वर्षों में ठंडा और ठोस हुआ है) के रूप में निर्मित माना जाता है और इसमें रेडियम, यूरेनियम और थोरियम जैसे स्वाभाविक रूप से रेडियोधर्मी तत्व शामिल होते हैं।

कदाचित यही कारण है कि प्राचीन ऋषियों ने शिवलिंग पर नीचे बहने वाले जल को छूने से सावधान किया था। इसी कारण शिव मंदिर समुद्र, तालाबों, नदियों, टैंकों या कुओं आदि जल के निकायों के पास बनाए जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्राचीन हिंदू ऋषियों के उत्कृष्ट कार्य का वेदों में कुछ श्लोकों का उल्लेख करके गलत अर्थ निकाला जाता है। यह सत्य है कि हाल के वैज्ञानिक निष्कर्षों ने प्राचीन हिंदू ऋषियों के विचारों की प्रासंगिकता को प्रदर्शित किया है।

पाश्चात्य जगत के विद्वानों ने अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए इन धारणाओं को पूर्व में बकवास कहकर खारिज कर दिया था, लेकिन यह भी सत्य है कि आइंस्टीन जैसे लोगों ने भारतीय वैदिक ज्ञान की प्रतिभा को मान्यता एवं सम्मान दिया है। पंथ, रंग, धर्म, देश या जातीयता की परवाह किए बिना ज्ञान का सम्मान करना बुद्धिमानी है, क्योंकि ज्ञान किसी व्यक्ति के वर्षों के कठिन उद्यमों का परिणाम है।

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