Tanot Mata Mandir: जैसरमेर में सीमा पर बना तनोट माता मंदिर 1965 और 1971 भारत और पाकिस्तान युद्ध का साक्षी है। इन युद्धों के दौरान जो गोले पाक की और से दागे और मंदिर के प्रांगण में गिरे उनमें से एक भी नहीं फट पाया। यह नजारा देख दुश्मन सेना भी दंग रह गई। यही देवी स्थान आज सब की आस्था का केंद्र बन गया है। मंदिर की देखभाल सीमा सुरक्षा बल के जवानों के हाथों में है।
वहीं बीएसएफ के हर जवान की आस्था इससे जुड़ी हुई है। इस चमत्कारिक मंदिर में श्रद्धालु रूमाल बांध कर मन्नतें मांगते हैं। इस मंदिर में 50 हजार से भी ज्यादा रूमाल बंध चुके हैं। इनमें कई मंत्री समेत प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल हैं वो भी माता का आशीर्वाद लेने के लिए यहां माथा टेक चुके हैं।
मंदिर में बंधे 50 हजार रूमालों को लेकर यहां के बुजुर्गों का कहना है कि बार्डर पर ड्यूटी के दौरान सेना के जवान सुबह शाम मंदिर में दर्शन के लिए आते थे। उस समय किसी ने मन्नत मांगी लेकिन मन्नत का धागा नहीं होने के चलते अपना रूमाल ही बांध कर मनोइच्छा पूरी करने की तनोट माता से याचना की उसके बाद जवान की मुराद पूर्ण होने के कारण रूमाल बांधने की प्रथा शुरू हो गई। जो आज भी जारी है।
बता दें कि इस मंदिर में सामान्य श्रद्धालुओं के अलावा कई मुख्यमंत्रियों व बडे-बड़े नेताओं के भी रूमाल बंधे हुए हैं। सीएम अशोक गहलोत जब भी जैसलमेर के दौरे पर होते हैं तो माता का आशीर्वाद लिया बिना नहीं लौटते, एक बार वह अपनी धर्मपत्नी के साथ मंदिर में मुराद मांग कर गए थे। वहीं पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी यहां मन्नत मांग चुके हैं। इस विख्यात मंदिर में आम आदमी के साथ-साथ कई बड़े नेताओं के भी रूमाल बंधे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब भी जैसलमेर का दौरा करते हैं, तब तनोट माता मंदिर जरूर आते हैं। मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां अपनी धर्मपत्नी संग पहुंच कर पूजा कर मनोकामना पूर्ती के लिए रूमाल बांधकर गए थे।
तनोट माता का मंदिर की दूरी जैसलमेर से करीब 130 कमीदूर भारत-पाक सीमा पर मौजूद है। माता तनोट को देवी हिंगलाज का रूप माना जाता है। हिंगालाज माता की शक्तिपीठ पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान राज्य तलासवेला जिला में स्थित है।
भाटी राजपूत राजा तणुराव ने विक्रमी संवत 828 में तनोट माता मंदिर का निर्माण करवाते हुए इसमें मूर्ति स्थापित करवाई थी। उन्होंने ने ही तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर सहित आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की तन मन से उपासना करत आ रहे हैं। मंदिर का भव्य मुख्य द्वार यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। जैसे ही मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं तो युद्ध में हुई जीत का प्रतीक विजय स्तम्भ मंदिर में रखा गया है। कालांतर में भाटी राजपूत अपनी राजधानी तनोट से जैसलमेर ले आए थे। लेकिन मंदिर वहीं रहा। तनोट माता का मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र शुरू से ही रहा है।
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1965 की जंग के दौरान माता का चमत्कार देख कर सैनिक भी दंग रह गए। यहां गिरने वाला हर गोला मां की शक्ति से निष्क्रिय होता चला गया। उसके बाद से सीमा सुरक्षा बल के जवानों की आस्था इसके प्रति गहरी होती चली गई।
1965 के युद्ध में भारतीय फौज को निशाना बनाकर पाक सेना द्वारा करीब 3 हजार बम गिराए गए थे। लेकिन मंदिर पर आंच तक नहीं आई। यही नहीं इस मंदिर से इंडो पाक जंग की कई चमत्कारिक यादें जुड़ी हुई हैं। इसके बाद माता का यह स्थान भारत ही नहीं बल्कि पाक फौज के लिए भी आस्था का केंद्र रहा है। क्योंकि विरोधी सेना मां की चमत्कारी शक्ति का देख चुकी थी। पाकिस्तानी सेना द्वारा गिराए गए बम आज भी जिंदा हैं और मंदिर में मौजूद हैं। उस समय पाकिस्तानी सेना 4 किलोमीटर अंदर तक भारत की सीमा में प्रवेश कर गई थी। परंतु युद्ध देवी के नाम से प्रसिद्ध तनोट माता के प्रकोप से पाकिस्तानी फौज को वापस लौटना पड़ा था। यही नहीं पाक सेना अपने 100 से अधिक मारे गए सैनिकों के शव भी छोड़ कर भाग गई थी। बताया जाता है कि युद्ध के दौरान माता का प्रभाव पाकिस्तानी सेना पर इस तरह हावी हो गया कि उन्होंने रात के अंधेरे में अपने सैनिकों को ही भारतीय आर्मी मान कर गोलाबारी करने लगे। इस तरह पाकिस्तानियों ने खुद के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस बात की गवाही मंदिर परिसर में रखे 450 तोप के गोले दे रहे हैं।
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जानकारी के अनुसार 1965 के युद्ध में मिली करारी हार के बाद माता की शक्ति से प्रभावित होकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से मंदिर दर्शन की अनुमति मांगी थी। जो उसे करीब ढाई साल के बाद मिली। तब जाकर शाहनवाज ने माता के चरणों में चरणों में शीश नवाते हुए माता की के स्वरूप पर चांदी का छत्र चढ़ाया।
पाक के साथ हुए दोनों युद्धों में दुश्मन सेना को नाको चने चबाने पर विवश करने वाली तनोट माता का मंदिर यहां करीब 1200 साल पुराना है। माता के मंदिर की महिमा को देखते हुए बीएसएफ ने यहां स्थाई चौकी बना ली है। बीएसएफ के जवान ही मंदिर से जुड़ा हर काम देखते हैं। यहां तक मंदिर की साफ-सफाई, पूजा आरती समेत दर्शन करने आने वाले भक्तों के लिए सुविधाएं मुहैया करवाने तक की व्यवस्था बीएसएफ जुटा रही है। पूरा साल यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
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एक समय था जब देवी मंदिरों में पशु बलि देने की प्रथा प्रचलन में थी। लेकिन सरकार ने इस पर रोक लगाते हुए रोक लगा दी थी। लेकिन लोगों की आस्था के चलते मंदिर में श्रद्धालु मुराद पूरी होने के बाद बकरे तो लेकर पहुंचते हैं परंतु बलि नहीं देकर इन्हें यहीं छोड़ जाते हैं। जो यहीं घूमते रहते हैं।
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