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India News(इंडिया न्यूज),Parshuram:भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों को विहीन कर दिया था। यह घटना महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। इसके पीछे मुख्य कारण था अधर्म का नाश और धर्म की पुनः स्थापना। आइए इस पौराणिक कथा को समझते हैं:
परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वे ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। परशुराम को भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है, और उन्हें शिव से अमोघ अस्त्र “परशु” (कुल्हाड़ी) प्राप्त हुआ था।
प्राचीन काल में क्षत्रियों का धर्म लोगों की रक्षा करना और न्याय सुनिश्चित करना था। लेकिन समय के साथ कई क्षत्रिय राजाओं ने अधर्म, अत्याचार, और शोषण करना शुरू कर दिया। वे ऋषियों, ब्राह्मणों, और सामान्य जनता को परेशान करने लगे।
हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य अर्जुन, जिन्हें सहस्रबाहु अर्जुन भी कहा जाता है, ने अपने बल के कारण अन्याय और अधर्म का मार्ग अपनाया।एक बार वह परशुराम के पिता, ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया और कामधेनु गाय को जबरन छीन लिया।जब परशुराम को यह बात पता चली, तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी और कामधेनु को वापस ले आए।
कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।अपने पिता की हत्या और अधर्म से परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए।
परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे पृथ्वी को अधर्मी क्षत्रियों से मुक्त करेंगे। उन्होंने 21 बार धरती का चक्कर लगाया और सभी अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया।21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों को विहीन करने का कारण यह था कि यह संख्या उनके पिता की हत्या के 21 घावों का प्रतीक थी।हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि परशुराम ने केवल उन क्षत्रियों का वध किया जो अधर्म के मार्ग पर चल रहे थे। उन्होंने धर्मी और न्यायप्रिय क्षत्रियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।
परशुराम के इस कार्य का उद्देश्य अधर्म और अन्याय का अंत करना था। इसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए कई यज्ञ किए और संपूर्ण पृथ्वी को कश्यप ऋषि को दान कर दिया।
परशुराम भगवान शिव के प्रिय शिष्य थे और उन्होंने भगवान शिव से दिव्य शस्त्र और युद्ध कला सीखी थी।भगवान शिव ने उन्हें अधर्म के नाश और धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित किया था।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि अधर्म और अन्याय का अंत करना धर्म का कर्तव्य है। परशुराम का क्रोध अन्याय के खिलाफ था, न कि धर्म के विरुद्ध।यह भी समझाया गया है कि शक्ति का उपयोग केवल धर्म और न्याय के लिए होना चाहिए।परशुराम का जीवन यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें धर्म और सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए।
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