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The relationship of an atheist is made by denying the existence of God
राम पाण्डेय
कौन है असली नास्तिक? किसे वास्तव में नास्तिक माना जाए, ये सवाल बहुत पेंचीदा है क्योंकि पक्का नास्तिक मिलना लगभग नामुमकिन है। इस शब्द का अगर संधि विच्छेद करें तो नास्ति यानि न और अस्ति का अर्थ होगा नहीं है, मतलब भगवान या परम सत्ता नहीं है। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो नास्तिक का संबंध ईश्वर के अस्तित्व को नकारने से है। इसका आमजन के लिए तो यही अर्थ ज्यादा चर्चित है किंतु आज हम इस शब्द की गहराई पर विचार करेंगे।
सामान्यत: सभी अनीश्वरवादी तथा भौतिकतावादी सहित संशयवादियों के विचार एक स्वर में नास्तिक घोषित कर दिए जाते हैं परंतु क्या हकीकत में उन्हें नास्तिक मान लेना सही होगा। सुपर पॉवर या फिर सर्वशक्तिमान की अनुपस्थिति को कितनी शिद्दत से मानते हैं अनीश्वरवादी? और जो उस अविनाशी की सत्ता को हृदय से स्वीकार करते हैं, उनकी भी आस्था कितनी गहरी होती है? अमूमन आस्तिक और नास्तिक, दोनों ही कहीं न कहीं किसी मध्य बिंदु पर आकर समान हो जाते हैं। दोनों की आस्थाएं ही कमजोर आस्थाएं हैं, क्योंकि ईश्वर यानि परम तत्व की उपस्थिति या पूर्णतया अनुपस्थिति की अवस्था दोनों को संशय में डाले रखती है। इसलिए चाहे वह कथित आस्तिक हो, या फिर स्वघोषित नास्तिक, जब भी बात अपने विश्वास पर पूर्ण निष्ठा की आती है, तो वे एक कंफ्यूज्ड परसन की तरह व्यवहार करते हैं।
हम किसे वास्तव में नास्तिक कहें? ये प्रश्न जितना जटिल है, इसका उत्तर भी उतना ही जटिल है…नास्तिक की कसौटी, आस्तिक होने से बहुत अधिक कठिन है। नास्तिक यानि जिसे स्वयं से अधिक किसी विश्वास और भरोसा किसी पर भी न हो…ऐसा इंसान ही नास्तिक कहलाने का हकदार हो सकता है, जो किसी परम सत्ता को अपने से हटकर न मानता हो, जो अहं ब्रह्मास्मि का उपास्य हो, जो स्वयं में भगवत्ता धारण करता हो, जो अंतरयात्रा की तैयारी पूरी कर चुका हो, वाह्य आडंबरों से रहित सनातन हो चुकने की अवस्था प्राप्त कर रहा हो… ये बहुत अर्थपूर्ण है…एक नास्तिक की खोज करने निकलें आप तो पाएंगे छद्म नास्तिक मिलेंगे, पाखंडी-ढोंगी नास्तिक मिल जाएंगे, उनकी अपरिपूर्ण आस्था किसी काम की नहीं… यहां आस्था शब्द का इस्तेमाल नास्तिक के विश्वास के लिए किया है हमने। ठीक यही हालत कथित आस्तिकों की है, जिनकी आस्था चुटकियों में खंडित हो जाती है।
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