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Dhirendra Shastri: धीरू से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बनने की कहानी, रूला देगी

Simran Singh • LAST UPDATED : August 3, 2023, 1:33 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Dhirendra Shastri, दिल्लीबागेश्वर धाम के बाबा धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री , आज एक ऐसा नाम बन्न चुके हैं , जिनसे हिंदुस्तान का हर इंसान वाकिफ है। पर सवाल ये उठता है की आखिर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले बागेश्वर धाम के महाराज इतने मशहूर कैसे हुए ? क्या असल में बाबा के पास कोई तीसरी आँख या जादुई शक्ति है जिससे रातो रात एक कथा वाचक इतना मशहूर हो गया ? आज हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बाबा धीरेन्द्र शाश्त्री की चर्चा होती ही रहती है। बुंदेलखंड के इस युवा कथा वाचक का धीरू से पंडित धीरेन्द्र कृष्णा शास्त्री बनने तक का सफर कैसा रहा ?

आइये जानते हैं।

बागेश्वर धाम के महाराज कहे जाने वाले धीरेन्द्र शास्त्री का जन्म छतरपुर जिले के ग्राम गधा में 1996 में हुआ था। इनके एक भाई और एक बहन और है।भाई छोटा है और उनका नाम सालिग राम गर्ग उर्फ़ सौरभ है। उनकी बेहेन का नाम रीता गर्ग है। पिता का नाम राम कृपाल गर्ग है और उनकी माता का नाम सरोज है , ऐसा कहा जाता है की माता सरोज महाराज जी को घर पर प्यार से धीरू कहकर बुलाती हैं और वही गाँव वाले उन्हें धीरेन्द्र गर्ग कहते हैं।

ऐसे शुरू हुआ था बाबा का सफर

धीरेन्द्र शास्त्री जी वैसे तोह बचपन से ही चंचल , चतुर और हठीले थे। शास्त्री जी की शुरूआती शिक्षा उनके गाँव के हीं सरकारी स्कूल से हुई थी। गाँव के पास स्थित गंज गाँव से उन्होंने हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल की शिक्षा प्राप्त की। शास्त्री जी का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था और उनके पिता गाँव में ही पुरोहित गिरी करके अपने परिवार का पेट पालते थे।

एक समय ऐसा आया की जब गाँव में इन्हीके परिवार के चाचा वगैरह ने गाँव में रहने वाले परिवारों को आपस में पुरोहित गिरी के लिए बाँट लिया। इस बंटवारे का महाराज के परिवार पर बेहद बुरा असर पड़ा। उनके ऊपर आर्थिक संकट छा गया। उनकी माता जी ने गाँव में ही भैंस का दूध बेचकर भरण पोषण करना शुरू किआ। इसी बीच बागेश्वर बाबा भी बड़े हो रहे थे। वो गाँव में निरंतर लोगों के झुण्ड के बीच बैठ कर कथा सुनाने लगे थे और धीरे धीरे वो कथा वाचक के तौर पर बेहद निपुण होगये। उन्होंने अपनी पहली भागवत कथा साल २००९ में पास के ही गाँव पहरा के खुदन में सुनाई थी। अपने कथा वाचन से उनकी ख्याति और भी बढ़ती चली गयी। आस पास के लोग उनसे कथा सुनने आने लगे।

 

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