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India News (इंडिया न्यूज), Gandhari In Mahabharat: महाभारत के महाकाव्य में गांधारी की कहानी एक ऐसे चरित्र की है जो न केवल एक मां के रूप में अपने पुत्रों के प्रति अत्यधिक समर्पित थीं, बल्कि अपने आदर्शों और विश्वासों के प्रति भी अडिग रहीं। उनकी भूमिका और उनके द्वारा किए गए बलिदान महाभारत की कथा में गहराई से बुन दिए गए हैं, और इनकी वजह से ही महाभारत के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आए।
जब गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ, तो उन्हें पता चला कि उनके पति जन्म से ही नेत्रहीन हैं। इस सत्य को जानने के बाद, गांधारी ने अपने पति के प्रति समानता का भाव रखते हुए अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी दृष्टि का त्याग कर दिया ताकि वह धृतराष्ट्र की तरह ही एक अंधकारमय जीवन जी सकें। यह केवल प्रेम का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह उनके बलिदान और समर्पण की गहराई को दर्शाता था। गांधारी के इस फैसले ने उनकी पूरी जिंदगी को प्रभावित किया, क्योंकि वह अपनी पूरी जिंदगी अंधकार में जीने के लिए तैयार हो गईं।
गांधारी ने अपने जीवन का हर क्षण अपने पुत्रों के लिए समर्पित कर दिया। वह अपने 100 पुत्रों की मां थीं और उन्होंने अपने बच्चों के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी। हालांकि, अपने पुत्रों के प्रति उनका यह असीम प्रेम उनके लिए एक प्रकार का अभिशाप भी साबित हुआ। वह हमेशा अपने पुत्रों का पक्ष लेती थीं, चाहे वे सही हों या गलत। उनके इस अंध प्रेम ने उनके पुत्रों को अधर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया। गांधारी के इस बलिदान ने उनके पुत्रों के भविष्य को गहरे अंधकार में धकेल दिया।
महाभारत के युद्ध में गांधारी के लिए सबसे बड़ा आघात तब आया जब उन्होंने अपने सभी पुत्रों को एक-एक करके खो दिया। एक मां के लिए अपने बच्चों को खोने से बड़ा कोई दुख नहीं हो सकता। लेकिन गांधारी ने इस विपत्ति का सामना धैर्य और साहस के साथ किया। उन्होंने अपने दुख को अंदर ही दबाए रखा और अपने धर्म का पालन करते हुए किसी भी प्रकार का प्रतिशोध नहीं लिया।
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गांधारी हमेशा धर्म और सत्य का पालन करती थीं। उन्होंने अपने पुत्रों को भी धर्म का मार्ग दिखाने की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पुत्र अधर्म के रास्ते पर चल पड़े। इसके बावजूद, गांधारी ने अपने धर्म का त्याग नहीं किया और हमेशा अपने आदर्शों के प्रति वफादार रहीं। उन्होंने अपने बच्चों को अधर्म से बचाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन उनकी सारी कोशिशें विफल रहीं।
महाभारत के युद्ध के दौरान, गांधारी को पता था कि उनके पुत्रों की हार निश्चित है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने युद्ध में किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं किया। वह जानती थीं कि उनके हस्तक्षेप से भी कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने अपने पति धृतराष्ट्र के साथ मिलकर हस्तिनापुर के राजमहल में ही रहना उचित समझा। गांधारी का यह बलिदान उनके अपने परिवार के प्रति समर्पण और धर्म के प्रति उनकी अडिगता को दर्शाता है।
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गांधारी के इन पांच बलिदानों ने महाभारत के पूरे घटनाक्रम को गहरे रूप से प्रभावित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कभी-कभी प्रेम और समर्पण की अति भी विनाश का कारण बन सकती है, लेकिन इसके बावजूद हमें अपने धर्म और आदर्शों के प्रति हमेशा वफादार रहना चाहिए।
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