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Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में दिशाओं का है बड़ा महत्व, जानें इससे जूड़ी पूरी जानकारी

Mudit Goswami • LAST UPDATED : January 29, 2024, 12:49 am IST

India News (इंडिया न्यूज) Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। अक्सर लोग भवन, मकान, मकान, दुकान, कार्यालय आदि का निर्माण करने से पहले दिशाओं का विशेष अध्ययन करती है। निरीक्षण के पीछे दिशा और घर की ऊर्जावान ऊर्जा अहम भूमिका निभाती है। इसलिए, निर्माण से पहले संपर्क दिशानिर्देशों पर ध्यान दें।

आज हम आपको बता देंकि वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में क्या कहा गया है और इसके क्या अर्थ हैं-

अग्नि कोण या अग्नि कोण- वास्तु शास्त्र में पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच के भाग को अग्नि कोण या अग्नि कोण कहा जाता है। इस दिशा को इंद्रदेव और न्यायाधीश यम की शक्ति का मिलन कहा जाता है। यह एक शक्तिशाली एवं ऊर्जावान दिशा है। इस दिशा में ज्वलनशील वस्तुएं जैसे चूल्हा, हम्माम या आग जलाने का स्थान रखना सर्वोत्तम होता है।

दक्षिण दिशा- यह इस दिशा का स्वामी है और इसका रंग कृष्ण है, यह न्याय करता है, हालाँकि न्यायाधीश का यह भी कहना है कि यह हथियार दंड देता है और सूर्य देव का पुत्र होने के कारण यह धन और समृद्धि प्रदान करता है। पितरों की दिशा भी दक्षिण दिशा बताई गई है। इस दिशा में भारी वस्तुएं रखना सही माना जाता है और घर की दक्षिण दिशा का स्थान ऊंचा हो तो लाभकारी होता है। पूर्वजों की तस्वीर दक्षिण दिशा में रखनी चाहिए और जीवित व्यक्ति को कभी भी दक्षिण दिशा की ओर कदम नहीं रखना चाहिए।

नैऋत्य कोण- दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच जो नैऋत्य कोण कहलाता है। यह भाग पश्चिम दिशा के देवता वरुण की शक्ति और दक्षिण दिशा के देवता की शक्ति से बना है। यह भाग शीतल प्रकृति और शान्त प्रकृति का मिश्रण है। इस दिशा में अस्त्र-शास्त्र है क्योंकि यह विनाशकारी प्रकृति का है इसलिए इस दिशा में स्थान ऊंचा हो तो अच्छा रहता है जो शत्रु भय से बचाता है। इस दिशा में नीला रंग या सुन्दर कृष्ण विवरण वाला रेशम अच्छा रहता है।

पश्चिम – यह दिशा वरुण देव की दिशा है और इस दिशा से सूर्य की किरणें निर्धारित होती हैं। इसलिए इस दिशा में खिड़की या दरवाजा होना अच्छा नहीं माना जाता है। डूबते सूरज की किरणें स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती हैं। इस भाग को भी ऊँचा रखना चाहिए। इस भाग में जल स्त्रोत स्थापित किया जा सकता है लेकिन शर्त यह है कि जल स्त्रोत सीधे पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए तथा जल आने का समय पश्चिम दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। यदि संभव हो तो इस दिशा में खुला कार्य ही रखना चाहिए, खदान पत्थर व कांच की होनी चाहिए तथा सफेद रंग की होनी चाहिए।

वायव्य कोण – वातावरण किसका है? पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच का स्वामी कौन है? उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर और पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण की शक्ति इसमें समाहित है और इस दिशा का स्वामी वायु है। इस दिशा का स्थान भी ऊंचा होना चाहिए। इस दिशा में हरे रंग के कांच के कंक्रीट का प्रयोग करना चाहिए।

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