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Vishwakarma Puja: जानिए 17 सितंबर को ही क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती

Vishwakarma Puja 2022: पूरे देश में आज 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जा रही है। हर साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को ही की जाती है। सूर्य के परागमन के आधार पर विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के महल तथा अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया था। इसलिए उन्हें शिल्‍पकार भी […]

BY: Akanksha Gupta • UPDATED :
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Vishwakarma Puja 2022: पूरे देश में आज 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जा रही है। हर साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को ही की जाती है। सूर्य के परागमन के आधार पर विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के महल तथा अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया था। इसलिए उन्हें शिल्‍पकार भी कह जाता है। विश्वकर्मा को देव शिल्पी भी कहा जाता है। उन्होंने सतयुग में स्वर्ग लोक, द्वापर में द्वारका, त्रेतायुग में लंका और कलियुग में जगन्नाथ मंदिर की विशाल मूर्तियों का निर्माण किया। इसके अलावा 11 ऋचाएं लिखकर ऋगवेद में इनके महत्व का वर्णन किया गया है। आइए जानते हैं कि 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा क्यों की जाती है।

भारत में कुछ जगह ये मान्यता है कि अश्विन मास की प्रतिपदा में भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। लेकिन करीब सभी मान्यताओं के मुताबिक यह एक ऐसा पूजन है जो कि सूर्य के पारगमन के आधार पर ही तय होता है। जिस वजह से हर साल ये 17 सितम्बर को ही मनाया जाता है।

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Vishwakarma Puja

भगवान विश्वकर्मा को माना जाता है इष्ट देव

आपको विश्वकर्मा भगवान के परिचय देते हुए बता दें कि “स्कंद पुराण के अंतर्गत विश्वकर्मा भगवान का परिचय ‘बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी। प्रभासस्यतस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च। विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति” श्लोक के माध्यम से मिलता है। इस श्लोक का ये अर्थ है कि बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या को जानती थीं। उनका विवाह 8वें वसु महर्षि प्रभास के साथ हुआ था। विश्वकर्मा इनकी संतान थे। सभी शिल्पकारों और रचनाकारों का भगवान विश्वकर्मा को इष्ट देव माना जाता है।

विधि-विधान के साथ करें विश्वकर्मा की पूजा

भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि-विधान के साथ करने के लिए सबसे पहले पूजा की सभी जरूरी सामग्री जैसे फूल, धूप, अक्षत, रक्षा सूत्र, रोली, चंदन, सुपारी, अगरबत्ती, दही, फल और मिठाई की व्यवस्था कर लें। इन सब के बाद दुकान, ऑफिस आदि के स्वामी को स्नान कराकर पूजा के आसन पर बैठना चाहिए। इसके बाद विधि-विधान से कलश को स्थापित कर पूजा करें।

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