संबंधित खबरें
पांचों पांडवो में किसको दिल दे बैठी थीं दुर्योधन की पत्नी, मन नें ही दबाए रखी थी इच्छा, फिर ऐसे हुआ विवाह!
महाभारत युद्ध में अर्जुन के रथ पर सवार थे हनुमान, फिर ऐसा क्या हुआ जो कर्ण की जान लेने पर उतारू हुए केसरी नंदन?
भूलकर भी इस दिन न छुएं तुलसी का पौधा, अगर कर दिया ऐसा तो घर के एक-एक सदस्य को चुकानी पड़ेगी कीमत
Today Horoscope: आज से इस 1 राशि के नसीब में आएगा अपार धन, तो वही इन 5 राशियों को उठाना पड़ेगा भारी नुकसान, जानें आज का राशिफल
सपने में होते देखना तलाक देता है ये गहरा संकेत, जानें क्या कहता है स्वप्न शास्त्र?
महाभारत के इस महान योद्धा का किसी ने नही किया अंतिम संस्कार, खुद चौंक गए थे यमराज, जानें क्या है छुपा हुआ रहस्य!
India News (इंडिया न्यूज), Story Of Bhishma In Mahabharat: यह कहानी महाभारत के सबसे महान और आदर्श पात्रों में से एक, भीष्म की है, जो न सिर्फ अपनी अद्वितीय प्रतिज्ञा के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपने असाधारण धैर्य, त्याग, और समर्पण के लिए भी पूजनीय हैं।
भीष्म का जन्म राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता गंगा थीं, जो उन्हें लेकर स्वर्ग चली गईं, लेकिन इससे पहले भीष्म (जिनका जन्म नाम देवव्रत था) को सभी प्रकार की शिक्षा और दिव्य ज्ञान प्रदान किया। गंगा ने अपने पुत्र को शस्त्र विद्या, वेद, और राजनीति की शिक्षा दी, जिससे वह एक शक्तिशाली और बुद्धिमान योद्धा बन गए। जब गंगा ने भीष्म को उनके पिता राजा शांतनु को वापस सौंपा, तब शांतनु ने उन्हें हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया।
कुछ समय बाद, राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक सुंदर स्त्री से प्रेम हो गया। सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थीं, लेकिन उनका जन्म अप्सरा से हुआ था। सत्यवती के पिता ने शांतनु के सामने विवाह के लिए एक शर्त रखी कि सत्यवती से जन्म लेने वाली संतान ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेगी। यह शर्त शांतनु के लिए एक बड़ी समस्या बन गई क्योंकि वे पहले ही अपने पुत्र भीष्म को युवराज घोषित कर चुके थे और उन्हें अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम था।
शांतनु की दुविधा को समझते हुए, देवव्रत (भीष्म) ने अपने पिता की खुशी के लिए एक अभूतपूर्व प्रतिज्ञा ली। उन्होंने सत्यवती के पिता के सामने वचन दिया कि वह आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और कभी विवाह नहीं करेंगे, ताकि सत्यवती की संतानों के लिए हस्तिनापुर की गद्दी का रास्ता साफ हो सके। यह प्रतिज्ञा इतनी कठोर और महान थी कि देवताओं ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके इस महान त्याग को देखते हुए उन्हें “भीष्म” की उपाधि दी, जिसका अर्थ है ‘भयंकर प्रतिज्ञा करने वाला’।
भीष्म की इस प्रतिज्ञा के कारण ही वह महाभारत के सबसे आदर्श और अनुकरणीय पात्रों में से एक बने। उन्होंने अपने पूरे जीवन में अपने वचन का पालन किया, हस्तिनापुर की सेवा की, और कुरु वंश की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका त्याग, निस्वार्थता और धर्म के प्रति समर्पण उन्हें अमर बनाता है।
भीष्म की यह कहानी हमें वचन पालन, त्याग और कर्तव्य के महत्व का बोध कराती है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन और इच्छाओं को अपने पिता, परिवार, और राज्य के हित के लिए त्याग दिया, जो महाभारत के महानतम पात्रों में से एक होने का प्रतीक है।
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.