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जिसे दुनिया ने कहां था नाजायज संतान आखिर कौन था वो शूरवीर, जिसने दी थी गांधारी और धृतराष्ट्र मुखाग्नि?

Facts Of Mahabharat: जिसे दुनिया ने कहां था नाजायज संतान आखिर कौन था वो शूरवीर जिसने दी थी गांधारी और धृतराष्ट्र मुखाग्नि

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Facts Of Mahabharat: महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें युद्ध, धर्म, नीति, और मानवीय भावनाओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। महाभारत युद्ध के बाद जहां पांडवों ने हस्तिनापुर का राजकाज संभाला, वहीं धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपना शेष जीवन तपस्या में बिताने का निर्णय लिया। यह कहानी हमें उनके जीवन के अंतिम दिनों और उनके अंतिम संस्कार की अनकही कथा को समझने का अवसर देती है।

महाभारत युद्ध के बाद का समय

महाभारत युद्ध में कौरवों के सभी 100 पुत्र मारे गए थे। अपने पुत्रों की मृत्यु और कुल के विनाश से गांधारी और धृतराष्ट्र अत्यंत दुखी थे। इस असीम दुख और पांडवों के साथ रह रहे अपराधबोध के कारण उन्होंने राजमहल को त्याग दिया और तपस्या के लिए जंगल चले गए।

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Facts Of Mahabharat: जिसे दुनिया ने कहां था नाजायज संतान आखिर कौन था वो शूरवीर जिसने दी थी गांधारी और धृतराष्ट्र मुखाग्नि

गांधारी और धृतराष्ट्र के साथ उनकी दासी संजय भी थीं। वे सभी वन में कुटी बनाकर रहने लगे और तपस्या करने लगे। अंततः जंगल में ही धृतराष्ट्र, गांधारी और संजय का देहांत हुआ। इस परिस्थिति में उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी किसने निभाई, यह प्रश्न महाभारत की कथा में विशेष महत्व रखता है।

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युयुत्सु: धृतराष्ट्र का जीवित पुत्र

महाभारत युद्ध में जहां कौरवों के 100 पुत्र मारे गए थे, वहीं एक कौरव पुत्र जीवित बचा था। यह पुत्र था युयुत्सु। युयुत्सु धृतराष्ट्र और उनकी दासी के पुत्र थे। यद्यपि युयुत्सु कौरव परिवार का हिस्सा थे, लेकिन उन्होंने धर्म का पक्ष लेते हुए युद्ध में पांडवों का साथ दिया।

युयुत्सु का चरित्र सत्य, धर्म, और न्याय का प्रतीक माना जाता है। महाभारत युद्ध के दौरान उनका पांडवों के साथ जाना यह दर्शाता है कि उन्होंने अधर्म के खिलाफ खड़े होने का साहस किया।

गांधारी और धृतराष्ट्र का अंतिम संस्कार

जब गांधारी और धृतराष्ट्र का देहांत हुआ, तो उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई और नहीं, बल्कि युयुत्सु ही थे। यह तथ्य महाभारत के प्रसंगों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

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युयुत्सु ने अपने पिता धृतराष्ट्र और सौतेली मां गांधारी का अंतिम संस्कार किया। यह कृत्य न केवल उनके प्रति उनका कर्तव्य था, बल्कि यह दर्शाता है कि युयुत्सु ने अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों को पूर्ण किया।

युयुत्सु का महत्त्व

युयुत्सु महाभारत के उन कम ज्ञात पात्रों में से एक हैं, जिनकी कहानी धर्म और कर्तव्य की गहराई को समझने में मदद करती है। उनका जीवन यह संदेश देता है कि सत्य और धर्म के प्रति अडिग रहना ही सच्चा साहस है।

युयुत्सु का धृतराष्ट्र और गांधारी के अंतिम संस्कार को संपन्न करना यह दिखाता है कि वह अपने परिवार के प्रति कितना समर्पित थे। यद्यपि उन्होंने युद्ध में पांडवों का पक्ष लिया, लेकिन अपने पिता और मां के प्रति उनका कर्तव्य अडिग रहा।

महाभारत की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में धर्म, सत्य और कर्तव्य का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। युयुत्सु का चरित्र इस बात का प्रमाण है कि कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और कर्तव्य का पालन करने वाला व्यक्ति सच्चा नायक होता है। गांधारी और धृतराष्ट्र के अंतिम संस्कार की यह कथा महाभारत की गहराई और उसकी शिक्षा को और भी सजीव बनाती है।

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