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India News (इंडिया न्यूज़), Why did Guru Nanak Ji Born in a Hindu Family and Establish Sikhism: कार्तिक पूर्णिमा सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक जी की जयंती (Guru Nanak Jayanti) है। गुरु नानक जी की जयंती को प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। बता दें कि लाखों लोगों के प्रेरणा स्रोत गुरु नानक जयंती के साथ-साथ कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली भी मनाई जाती है और रात में खूब दीये जलाए जाते हैं। इस मौके पर ये जान लें कि हिंदू परिवार में जन्मे गुरु नानक देव जी के मन में सिख धर्म की स्थापना का विचार क्यों आया था?
गुरु नानक देव जी की जयंती को प्रकाश पर्व इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समाज की अज्ञानता को दूर करने के लिए ज्ञान का दीपक जलाया था। उनका जन्म 1469 ई. में लाहौर (अब पाकिस्तान में) से 64 किलोमीटर दूर राय भोई दी तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ था। सिख परंपराओं में, ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक देव जी का जन्म और उसके बाद के शुरुआती साल कई मायनों में खास थे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने गुरु नानक को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया था।
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उनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जल्द ही इस्लाम और फिर हिंदू धर्म का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया। इसके कारण बचपन में ही उनमें कविता और दर्शन की अद्भुत शक्ति विकसित हो गई। एक प्रसिद्ध कहानी है कि गुरु नानक देव जी मात्र 11 वर्ष की आयु में ही विद्रोही हो गए थे, जबकि इस आयु तक हिंदू लड़कों का यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका होता है और वो पवित्र जनेऊ पहनना शुरू कर देते हैं। गुरु नानक जी ने इसे पहनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जनेऊ पहनने के बजाय हमें अपने व्यक्तिगत गुणों को निखारना चाहिए।
अपने ज्ञान के विस्तार के साथ गुरु नानक जी ने एक विद्रोही आध्यात्मिक रेखा खींचना जारी रखा। उन्होंने स्थानीय संतों और मौलवियों से सवाल करना शुरू कर दिया। वो हिंदू और मुसलमान दोनों से सवाल कर रहे थे। उनका पूरा जोर आंतरिक परिवर्तन पर था और उन्हें दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं था। उन्होंने कुछ समय तक मुंशी के तौर पर काम किया लेकिन कम उम्र में ही उन्होंने आध्यात्मिक विषयों का अध्ययन करना शुरू कर दिया। वो अपने आध्यात्मिक अनुभव से बहुत प्रभावित हुए और प्रकृति में ईश्वर की खोज करने लगे। उनका मानना था कि चिंतन के जरिए अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है।
साल 1496 में गुरु नानक देव का विवाह हुआ और उनका अपना परिवार भी हो गया। इस बीच वो भारत और तिब्बत से अरब तक की आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े जो 30 साल तक जारी रही। इस दौरान वो पढ़े-लिखे लोगों से अध्ययन और शास्त्रार्थ करते रहे। इसी क्रम में उन्होंने सिख धर्म को आकार दिया और बेहतर जीवन के लिए अध्यात्म की स्थापना की। धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी, जिन्हें गुरु नानक देव जी ने तीन कर्तव्य बताए। इनमें प्रार्थना या सुमिरन, क्रिया या काम और दान शामिल हैं।
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गुरु नानक देव जी ने हमेशा अपने शिष्यों को ईश्वर को याद करने, किरत करने यानी ईमानदारी से आजीविका कमाने और अपनी कमाई दूसरों में बांटने यानी दान देने और दूसरों का ख्याल रखने की शिक्षा दी। सिख का शाब्दिक अर्थ है शिष्य। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने वाले उनके शिष्य बाद में सिख कहलाए और इस तरह एक नए धर्म की स्थापना हुई, जिसमें ईश्वर को याद करना, ईमानदारी से जीवन जीना यानी अपराध से दूर रहना, जुआ खेलने, भीख मांगने, शराब और तंबाकू उद्योग में काम करने और दूसरों की मदद करने से बचना शामिल है। गुरु नानक देव की शिक्षाओं के आधार पर, सिख भी काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के पांच स्वार्थी दोषों से बचने की कोशिश करते हैं।
गुरु नानक देव जी अपने जीवन के अंतिम दिनों में पंजाब के करतारपुर में रहते थे। वहां उन्होंने अपनी शिक्षाओं से बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित किया जो उनके अनुयायी बन गए। उनका सबसे महत्वपूर्ण संदेश था कि ईश्वर एक है। हर इंसान सीधे ईश्वर तक पहुंच सकता है। इसके लिए किसी कर्मकांड, पुजारी या मौलवी की जरूरत नहीं होती। उन्होंने जाति व्यवस्था को खत्म करने जैसा सबसे क्रांतिकारी सुधार किया और कहा कि हर इंसान एक जैसा है, चाहे उसकी जाति या लिंग कुछ भी हो।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के कारण ही सिख धर्म में व्रत, तीर्थयात्रा, अंधविश्वास, मुर्दों की पूजा और मूर्ति पूजा जैसी कोई रस्म नहीं है। इसके बजाय गुरु की इस शिक्षा का पालन किया जाता है कि ईश्वर की नजर में अलग-अलग जाति, धर्म और लिंग के लोग समान हैं। यह धर्म पुरुष और महिला के बीच समानता सिखाता है। सिख महिलाओं को किसी भी धार्मिक समारोह में भाग लेने का पुरुषों के समान अधिकार है। वो कोई भी अनुष्ठान कर सकती हैं और प्रार्थना में मंडली का नेतृत्व भी कर सकती हैं।
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बाबा नानक शाह फकीर नामक पुस्तक ताजुद्दीन नक्शबंदी ने लिखी है। इसी तरह डॉ. कुलदीप चंद की पुस्तक श्री गुरु नानक देवजी में भी कई कहानियों का वर्णन है। ऐसी ही एक कहानी है कि गुरु नानक देव जी अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान मक्का जा रहे थे। वहां पहुंचने से पहले वो थक गए और एक विश्राम गृह में रुक गए और मक्का की ओर पैर करके लेट गए। यह देखकर तीर्थयात्रियों की सेवा करने वाला एक व्यक्ति क्रोधित हो गया। उसने नानक देव जी से पूछा कि आप मक्का और मदीना की ओर पैर करके क्यों लेटे हैं? गुरु नानक देव जी ने कहा कि अगर आपको अच्छा नहीं लग रहा है तो मेरे पैर उस तरफ कर दीजिए जहां भगवान मौजूद नहीं हैं। गुरु नानक जी ने समझाया कि भगवान हर दिशा में मौजूद हैं। उनका सच्चा भक्त वही है, जो अच्छे कर्म करते हुए हमेशा उन्हें याद करता है।
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