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India News (इंडिया न्यूज़), Yudhishthira’s Chariot: महाभारत का युद्ध, जो 18 दिनों तक चला, न केवल युद्ध की दास्तान है बल्कि इसमें नायकों और उनकी नैतिकता की भी कहानियाँ हैं। पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा और उनके रथ के विशेष स्वरूप की कहानी पौराणिक कथाओं में प्रमुख स्थान रखती है। आइए इस कथा के विवरण को समझते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे युधिष्ठिर का रथ जमीन से सटा और इसके पीछे की वजह क्या थी।
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युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा: युधिष्ठिर को धर्मराज के नाम से भी जाना जाता है। वह हमेशा सत्य और धर्म का पालन करते थे। उनका रथ हमेशा जमीन से चार उंगलियों ऊंचा रहता था, जो उनके सत्य और धर्म की प्रतीक था। यह ऊँचाई उनके पुण्य और धर्म की पुष्टि करती थी।
धर्म और पुण्य का संकेत: युधिष्ठिर के रथ का ऊँचाई में रहना उनकी पवित्रता और सत्यनिष्ठा का संकेत था। यह दर्शाता था कि उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला और अपने जीवन में हमेशा सत्य और धर्म का पालन किया।
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गुरु द्रोणाचार्य और झूठ: महाभारत के युद्ध के दौरान, एक महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब युधिष्ठिर ने अपने गुरु द्रोणाचार्य से झूठ बोला। गुरु द्रोणाचार्य ने पूछा कि क्या अश्वत्थामा मारा गया है, तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि अश्वत्थामा मारा गया है। लेकिन उसने धीरे से जोड़ा कि “हाथी” शब्द, जिसका मतलब था कि अश्वत्थामा का हाथी मारा गया है, न कि अश्वत्थामा स्वयं।
गुरु की प्रतिक्रिया: द्रोणाचार्य, जो अपने पुत्र अश्वत्थामा के बारे में चिंतित थे, ने इस झूठी खबर को सुना और दुखी होकर अपने हथियार डाल दिए। यह खबर उनके लिए अत्यंत कष्टकारी थी, और उनकी हार मान लेना एक बड़ा मोड़ था।
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रथ का जमीन से लगना: युधिष्ठिर के झूठ बोलने के कारण उनका रथ अचानक जमीन से सट गया। यह घटना उनकी सत्यनिष्ठा और पुण्य पर एक धक्का थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब युधिष्ठिर ने झूठ बोला, तो उनके पुण्य और सत्यनिष्ठा का प्रभाव उनके रथ की ऊँचाई पर भी पड़ा।
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