अर्जुन का अभिमान
महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन ने श्री कृष्ण से एक बार यह कह दिया था कि वे सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर हैं और कोई भी उनके जैसे धनुर्धर नहीं होगा। अर्जुन के मन में यह विचार गहरे तक बैठ चुका था कि वह अपनी धनुर्विद्या में सबसे महान हैं। उनका यह अभिमान उनके आत्मविश्वास का कारण बना, लेकिन यह एक आत्ममुग्धता और अहंकार का रूप भी लेने लगा। श्री कृष्ण, जो सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान थे, ने अर्जुन के अभिमान को समाप्त करने का निश्चय किया, ताकि उसे सही मार्ग पर लाया जा सके।
हनुमान जी की परीक्षा
श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या में श्रेष्ठता का अहंकार त्यागने के लिए हनुमान जी को भेजा। हनुमान जी, जो कि भगवान शिव के अंश और राम के परम भक्त थे, उनकी परीक्षा के लिए तैयार हो गए। श्री कृष्ण ने हनुमान जी से कहा कि वे अर्जुन से धनुर्विद्या की परीक्षा लें, ताकि वह अपने अभिमान को जान सके।
हनुमान जी ने अर्जुन से कहा, “मैं आकाश में उड़ता रहूंगा और तुम मुझे अपने बाणों से निशाना साधो।” पहले तो अर्जुन संकोच करने लगे, लेकिन श्री कृष्ण के निर्देशों पर वह तैयार हो गए। अर्जुन ने अपनी पूरी ताकत से हनुमान जी की दिशा में तीर चलाना शुरू किया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, कोई भी तीर हनुमान जी को छू नहीं सका। हनुमान जी ने यह पूरा खेल बड़े आराम से देखा और फिर वापस आकर अर्जुन से कहा, “तुम तो बहुत ही कमजोर धनुर्धर हो, तुम्हारा निशाना मुझ तक पहुंच ही नहीं पाया।”
अर्जुन का अभिमान समाप्त होना
हनुमान जी की यह बात अर्जुन के लिए एक कठोर सत्य थी। उन्हें एहसास हुआ कि उनका अभिमान उनके आत्ममूल्य के अनुरूप नहीं था। उन्होंने यह समझा कि उनके अंदर भी कमजोरियां हैं और किसी भी क्षेत्र में आत्ममुग्धता, विशेषकर स्वयं को सबसे महान मानना, एक भ्रम और गलत धारणा है। इस अनुभव के बाद अर्जुन ने अपने अभिमान को त्याग दिया और खुद को और अधिक न humble करना शुरू किया।
महाभारत में यह घटना इस बात को स्पष्ट करती है कि अभिमान और आत्ममुग्धता हमें हमारी असली क्षमता को पहचानने से रोकते हैं। अर्जुन, जो अपने आप को सबसे महान धनुर्धर मानते थे, ने हनुमान जी के साथ अपनी परीक्षा के माध्यम से यह सिखा कि जीवन में किसी भी क्षेत्र में स्थायी श्रेष्ठता और बिना आत्ममूल्यांकन के किसी भी चीज का गर्व करना गलत है। इस घटना ने अर्जुन को एक महान जीवन पाठ दिया और उसकी समझ में एक गहरी विद्या का संचार किया। श्री कृष्ण ने यह सुनिश्चित किया कि अर्जुन केवल एक महान योद्धा ही नहीं, बल्कि एक विनम्र और संतुलित व्यक्ति भी बने।
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यह कथा हमें यह सिखाती है कि किसी भी स्थिति में अभिमान करना, चाहे वह किसी विशेष कौशल में हो या किसी अन्य बात में, आत्मज्ञान के मार्ग में बाधा डालता है।
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